Saturday, July 16, 2016

सुप्रभात जी
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अरे जीव ! तुने प्रकृती से संबंध बना कर अपनी स्थिती उसमें करके तू बाह्यमुखी हो गया है.. तूं अपनी मुर्खता में इधर - उधर क्यों भटक रहा है ? प्रकृती से संबंध से तूने कूकर, शूकर, कीट पतंगादि अनन्त शरीर धारण किये | अनंत स्त्री, पति, पुत्र बनाये, एवं अब भी बनाता जा रहा है | किंतु तू जिस दिव्यानंद को चाहता है, वह कहाँ है, यह नहीं सोच पाता | अरे जीव सुन ! वेद - पुराणादि द्वारा यह निर्विवाद सिद्ध है कि वह परमानन्द एकमात्र तेरी शरणागति व प्रेम मार्ग से ही प्राप्त हो सकता है | *ध्यान दे, तेरी शरणागती, नाकि तेरे मनकि शरणागती..* जब तू परमात्माको भलीभांती शुक्ष व अन्नत रूप मे जानकर अन्नय अदूैत प्रेमभाव से उनको धारण करेगा तब तू अनन्त काल के लिए आनन्दमय होजायगा; इस प्रकार तेरी सब बिगड़ी बन जायेगी | शिघ्र कर समय निकल रहा है... *अपने को प्रकृती से हटा कर परमात्मा में स्थित करले इसके अलावा कोई मार्ग नही है..*
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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