*कबीर*
में रोऊँ सब जगत को, मोको रोवे न कोय |
मोको रोवे सोचना, जो शब्द बोय की होय ||
Satsangwithparveen.blogspot.com
मैं हर किसी को अदैूत के लिय कहता रहता हूं..बार बार अदूैत में आने को कहता हूं.. किन्तु मेरी अदूैत कि भाषा कोई नही समझ पा रहा है..सब दूैत मे अटके पडे हैं...मेरे लिए कोई नहीं रोता अर्थात् मेरे दर्द को कोई नहीं समझता | मेरे दर्द को वही प्राणी देख और समझ सकता है जो केवल मेरे शब्दो के फेर में ना पड़के ‘शब्द-सार’ को समझता है | अर्थात मेरे शब्दो को हृदय में बोने के बाद उससे जो सार रूपी वृक्ष लगेगा उसपे अदूैत के फल लगेंगे उन फलो से अदूैत का रस लेने से तुम माया को और बृह्म को जानकर अदूैत में स्थित हो पाओगे..
इसलिय शब्दो के सार को गृहण करो..
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
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मोको रोवे सोचना, जो शब्द बोय की होय ||
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मैं हर किसी को अदैूत के लिय कहता रहता हूं..बार बार अदूैत में आने को कहता हूं.. किन्तु मेरी अदूैत कि भाषा कोई नही समझ पा रहा है..सब दूैत मे अटके पडे हैं...मेरे लिए कोई नहीं रोता अर्थात् मेरे दर्द को कोई नहीं समझता | मेरे दर्द को वही प्राणी देख और समझ सकता है जो केवल मेरे शब्दो के फेर में ना पड़के ‘शब्द-सार’ को समझता है | अर्थात मेरे शब्दो को हृदय में बोने के बाद उससे जो सार रूपी वृक्ष लगेगा उसपे अदूैत के फल लगेंगे उन फलो से अदूैत का रस लेने से तुम माया को और बृह्म को जानकर अदूैत में स्थित हो पाओगे..
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