Tuesday, July 12, 2016

यमराज और चित्रगुप्त कौन हैं ??
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*यमराज* यम का अर्थ है "जोडना" या "दो" हमारा माया के साथ योग से माया हमपर राज करने लगती है यही यम का राज है आर्थात यमराज इसके कई पार्षद है जैसे मन, चित, बुद्धि, अहंकार इन्द्रियां आदी. इन सबके वशिभूत होकर जीव यमराज से संयोग करता है या यूं कहें कि यमराज के साथ संयोग से ही उसके पार्षद जीव को पकड़ लेते है...
यमराज का वाहन भैसा बताया गया है जो काल का प्रतीक है अर्थात माया काल से चलायमान है या यूं कहें की माया याने यम का वाहन काल याने भैंसा है..जो बना है वो मिटेगा यही काल है इसी काल रूपी भैंसे की थ्योरी पर माया याने यमराज विराजमान है ...

*यमराज का रंग नीला कहा गया है* ये हमारी परकृती के साथ स्थिती का रंग है इसको आप ध्यान में बडी आसानी से देख सकते हैं.. अर्थात ध्यान में हमें कई बार जो नीला रंग दिखाई देता है वह हम पर यम याने माया का राज या हमारी माया या पृकृती के सात स्थिती को दर्शाता है अर्थात ध्यान में दिखने वाला नीला रंग ही हमारा यमराज है..
यमराज का दूसरा नाम धर्मराज भी है , अर्थात जीव की प्रकृती से संयोग की मान्यता से उसे अनेक धर्मों का पालन करना पडता है जैसे पूत्र धर्म, पिता धर्म, राज धर्म आदि आदि.. यही प्रकृती से संयोग की मान्यता से अनेक धर्मों की हमारी दासता या धर्मों की हमपर सत्ता या राज ही धर्मराज है.. प्रकृती से संयोग याने यमराज से ही हम पर अनेक धर्मों का राज होता है अर्थात यमराज का दूसरा नाम ही धर्मराज है..
सर्व धर्मान परित्यज्य माम् एकम सरणं व्रज : I
अहम त्वाम सर्व पापेभ्यो मोक्ष्य इस्यामि माँ शुच :II (भ.गी:अ १६,श्लो६६)

यमराज को गदाधारी दर्शाने का भाव उसे बलवान दिखाने से है.. जैसे हनुमान और भीम को बलशाली व गदाधारी कहा गया है, प्रतेक बलवान को गदाधारी दर्शाया जाता है..

यमराज के गुप्तचर नाम श्रवण कहा गया है.  श्रवण का शाब्दिक अर्थ सुन्ना होता है और मूल अर्थ ग्रहण करना है अर्थात जो भी हम गरहण करते है उस से हमारी प्रकृती या माया के साथ स्थिती का पता चलता है..

*चित्रगुप्त* चित्रगुप्त का अर्थ है जो चित्र या दृष्य गुप्त रूप से विराजमान हैं .. ये हमारा चित है ,चित ही चित्रगुप्त है , हमारे अनंन्त जन्मो के कर्म संसकार या चित्र रूप में शुषुप्त मन याने चित में गुप्त रूप से विराजमान रहते हैं, इन्हि चित के गुप्त संग्रहो को चित्र गुप्त कहते है इसमें आपके अनंन्त जनमों का लेखा जोखा या संसकार व्याप्त है जो प्रारब्द के रूप में हमें मिलते हैं... यही हमारे कर्मों के फल के रूप है...
ये गहन्ता की पेचितगी आमजन के लिय समझपाना कठीन है इसलिय पुराणो में इसे मूर्तिमान करके कथारूप मे दर्शादिया गया..
*यमराज और नचिकेता कि कथा का सार इसी भाव से समझ आ जायगा*

* जब जीव का संयोग परमात्मा से हो जाता है तो वह दो या दूैत या यम के बन्धन से मुक्त हो सकता है*
*याने केवल अदैत के दूारा*

ध्यान रहे दूैत में स्थित रहे तो यमराज याने माया तुम्है धसीट कर ले जायेगा..
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

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