Sunday, January 7, 2018

मैं हमेशा कहता हूं ''सदा स्वयं के भीतर गहरे से गहरे होने का प्रयास करते रहो। भीतर बोहोत गहराई है।क्योंकि अथाह जिसकी गहराई है, उसकी उसके आचरण और व्यवहार में अपने आप ऊंचाई हो जाती है।''
जीवन जितना ही ऊंचा हो जाता है, जितना कि आप अंदर से गहरे हो। गहराई के आधार पर ही ऊंचाई के शिखर संभलते हैं। दूसरा और कोई रास्ता नहीं। गहराई असली चीज है। उसे जो पा लेता है, उन्हें ऊंचाई तो अनायास ही मिल जाती है।
 गमले में लगाए गए पेड़ यापौधे कभी भी बाहरी रूप से विकसित नहीं हो पाते, क्योंकि कायदा है कि जब जड़ें नीचे नहीं जाएंगी, तो वृक्ष ऊपर नहीं बढ़ेगा। ऊपर और नीचे दोनों में इस किस्म का संबंध है कि जो लोग ऊपर बढ़ना चाहते हैं, उन्हें अपनी आत्मा में जड़े बढ़ानी चाहिए। भीतर जड़े नहीं बढ़ेंगी, तो जीवन कभी ऊपर नहीं उठ सकता है।
लेकिन, हम इस सूत्र को भूल गए हैं और परिणाम में जो जीवन देवदार के दरख्तों की भांति ऊंचे हो सकते थे, वे गमले के पौधों की भांति जमीन से बालिश्त भर ऊंचे नहीं उठ पाते हैं! मनुष्य छोटे से छोटा होता जा रहा है, क्योंकि स्वयं की आत्मा में उसकी जड़ें कम से कम गहरी होती जाती हैं।

शरीर सतह है, आत्मा गहराई। शरीर में जो जीता है, वह गहरा कैसे हो सकेगा? शरीर में नहीं, आत्मा में जीओ। सदैव यह स्मरण रखो कि मैं जो भी सोचूं, बोलूं और करूं, उसकी परिसमाप्ति शरीर पर ही न हो जावे। शरीर से भिन्न और ऊपर भी कुछ सोचो, बोलो और करो। उससे ही क्रमश: आत्मा में जड़े मिलती हैं और गहराई उपलब्ध होती है।

*जो वृक्ष बिना गहरे हुए ऊपर ऊपर उठते जाते है, वो एक दिन निश्चित ही गिर जाते हैं,जैसे आजकल के साधू ।*

Satsangwithparveen.blogspot.com

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