Tuesday, January 9, 2018

प्रेम को जानो। उससे ऊपर और कुछ भी नहीं है। यह जीवन का परम लक्ष्य है ।

प्रेम क्या है?

''प्रेमजो कुछ भी हो, उसे शब्दों में कहने का उपाय नहीं, क्योंकि वह कोई विचार नहीं है। प्रेम तो अनुभूति भी नहीं है, क्योंकि अनुभूति भी बताई जा सकती है। सबकुछ समाप्त होना ओर जैसा है वैसा होना ही प्रेम है, इसलिए उसे जाना नहीं जा सकता। इसकी छोटी सी झलक पानी हो तो प्रेम पर विचार मत करो। विचार को छोड़ो और फिर जगत को देखो।इसमें जो शांति है, वही उस प्रेम की झलक है।''

 किसी फकीर से एक पंडित ने पूछा, ''क्या आपको शास्त्रों में वर्गीकृत प्रेम के विभिन्न रूपों का ज्ञान है?'' वह फकीर बोला, ''मुझ जैसा अज्ञानी शास्त्रों की बात क्या जानें?'' इसे सुनकर उस पंडित ने शास्त्रों में वर्गीकृत प्रेम की विस्तृत चर्चा की और फिर उस फकीर का तत्संबंध में मंतव्य जानना चाहा। वह फकीर खूब हंसने लगा और बोला, ''आपकी बातें सुनकर मुझे लगता था कि जैसे कोई सुनार फूलों की बगिया में घुस आया है और वह स्वर्ण को परखने वाले पत्थर पर फूलों को घिस-घिसकर उनका सौंदर्य परख रहा है!''

प्रेम को विचारों मत- जीओ। लेकिन, स्मरण रहे कि उसे जीने में स्वयं को खोना पड़ता है। अहं अप्रेम है और जो जितना अहं को छोड़ देता है, वह उतना ही प्रेम से भर जाता है। ऐसा प्रेम ही सत्य के द्वार की सीढ़ी है।

Satsangwithparveen.blogspot.com

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