Sunday, January 21, 2018

 एक दिन मैंने सूची बनाई थी- उन सब तत्वों को पाने की, जिन्हें पाकर व्यक्ति धन्यता को उपलब्ध होता है। स्वास्थ्य, सौंदर्य, सुयश, शक्ति, संपत्ति- उस सूची में सब कुछ था। उस सूची को लेकर मैं एक बुजुर्ग के पास गया और उनसे कहा कि क्या इन सब बातों में वो सब नहीं आता जो मुुुझेे चाहिए ? मेरी बातों को सुन और मेरी सूची को देख उन वृद्ध की आंखों के पास हंसी इकट्ठा होने लगी थी और वे बोले थे, ''मेरे बेटे, बड़ी सुंदर सूची है। अत्यंत विचार से तुमने इसे बनाया है। लेकिन, सबसे महत्वपूर्ण बात तुम छोड़ ही गये हो, जिसके अभाव में शेष सब व्यर्थ हो जाता है।  मैंने पूछा, ''वह क्या है?'' क्योंकि मेरी दृष्टिं में तो सब-कुछ ही आ गया था। उन वृद्ध ने उत्तर में मेरी पूरी सूची को निर्ममता के साथ काट दिया और कहा कि जो तुम चाह ते हो ये वो सब नहीं है । उन सारे शब्दों की जगह उन्होंने केेेवल एक शब्द लिखा, "आनंंद"

ओर कहा, जो तुमने सूची बनाई है वो तो सब बाहर मिलने वाला सामना है, पर जो तुम चाहते हो वो तुम्हे अंदर मिलेगा, ये दोनों अलग अलग स्थान पर मिलने वाली वस्तुएं हैं, बस तुम इतनी सी बात नहीं समझ रहे हो। तुम समझते हो तुम्हारी बनाई सूची से तुम्हे आनंद मिलेगा, पर तुम ये नहीं समझ पाए कि आनंद किसी वस्तु में नहीं होता बल्कि आनंद तो अपने आप में स्वतंत्र है, वो किसी वस्तु में नहीं होता बल्कि खुद में ही होता है, इसके मार्ग वस्तुओं से अलग है ।

आनंद को चाहो, वतुओ को नहीं। लेकिन, ध्यान रहे कि उसे तुम अपने भीतर नहीं पाते हो, तो कहीं भी नहीं पा सकोगे। आनंद कोई बाह्य वस्तु नहीं है। वह तो स्वयं ही हो, ध्यान रहे कि हर परिस्थिति में भीतर संगीत बना रहे। अंतस के संगीतपूर्ण हो उठने का नाम ही आनंद है। वह कोई रिक्त और खाली मन:स्थिति नहीं है, किंतु अत्यंत सत्य संगीत की भावदशा है।

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