*ध्यान का उद्देश्य क्या है ?*
सुप्रभात जी
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ध्यान का उद्देश्य है सवंय में स्थित होना ,हम शुद्ध निर्लििप्त व निर्विकार हैं ध्यान में हम उसी अवस्था में स्थित होते हैं जो हमारा स्वभाव है .
' सवंय ' की स्थिती में दुखों का नाश छिपा हुआ है अर्थात दुखों की आत्यंतिक निवृति होना .कयोकी सवंय में स्थित होने से हमरी स्थिती प्रकृती या माया से हटती है.. प्रकृती या माया को ही दुख का मूल काहा गया है इसलिय ' सवंय ' की स्थिती में दुखों का नाश छिपा हुआ है...
सुख-दुःख मन के अंतर्गत हैं , हम सवंय , मन के परे हैं .
अतः मन की किसी क्रिया द्वारा सवंय को नहीं पाया जा सकता है.
ध्यान मन का अतिक्रमण है ,ध्यान मन से मुक्ति है ताकि मन के अतीत सवंय में स्थित हो सकें .
ध्यान मन की कोई क्रिया नहीं है ,अपितु मन की अक्रिय अवस्था को ध्यान कहते है .मन की अक्रिय जागरूक अवस्था ध्यान
है .
एकाग्रता ,पूजा -पाठ ,मंत्र जाप ,त्राटक ,चक्र व कुण्डिलिनी जागरण ये सभी ध्यान नहीं है ,ये सभी मन की क्रियाएँ हैं.
मन की क्रिया द्वारा मन का अतिक्रमण संभव नहीं है .क्योंकि प्रत्येक मन की क्रिया में मन व अहम उपस्थित रहेगा .
जब मन की कोई क्रिया नहीं है अर्थात आप कुछ नहीं कर रहे है सिर्फ जागरूक हैं ,साक्षी है ,विश्रांत हैं ,मात्र होनापन है
यह है 'ध्यान '.आप न तो एकाग्रता कर रहे है ,न मंत्र जाप कर रहे हैं ,न त्राटक,न पूजा पाठ ,न चक्र या कुण्डिलिनी जागरण
आप मात्र मन के साक्षी हैं ,दृष्टा है ,मात्र "आप हैं " -यह है ध्यान . ध्यान का आपका स्वरूप है ,
*सवंय में स्थित होने के बाद आगे का रस्ता सुलभ हो जाता है.. जिस से सत्य की प्राप्ती होती है*
इसलिय काहा है .. *पहले आप पहचानो रे साधो..*
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प्रणाम जी
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