अहम या "मैं’ से भागने की कोशिश मत करना। उससे भागना हो ही नहीं सकता, क्योंकि भागने में भी वह साथ ही है। उससे भागना नहीं है बल्कि समग्र शक्ति से उसमे प्रवेश करना है। खुद की अंह की सत्ता में जो जितना गहन होता जाता है उतना ही पाता है कि अंहता की कोई वास्तविक सत्ता है ही नहीं। अहम को शुक्षमता से देखने पर अहम की सत्ता समाप्त होने लगती है..इसको त्यागना नहीं है क्योंकि त्यागने में अहम रहता है।
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