Saturday, March 24, 2018

आंखे बंद करके क्या देखना है

एक फकीर स्त्री थी- राबिया। एक सुंदर प्रातःकाल में किसी ने उससे कहा था, 'राबिया, भीतर झोपड़े में क्या कर रही हो? यहां आओ, बाहर देखो, परमात्मा ने कैसा मनोरम प्रभात को जन्म दिया है।' राबिया ने भीतर से कहा , 'तुम बाहर जिस प्रभात को देख रहे हो, मैं भीतर उसके ही बनाने वाले को देख रही हूं।

तुम भी भीतर आ जाओ और जो अंदर है, उस सौंदर्य के आगे बाहर के किसी सौंदर्य का कोई अर्थ नहीं है।'

पर कितने हैं, जो आंख बंद करके भी बाहर ही नहीं बने रहेंगे? अकेले आंख बंद करने से ही आंख बंद नहीं होती है। आंख बंद है, पर तुम देख वहीं रहे हो जो आंखे खोले हुए देखते हो। पलक बंद हैं, पर दृश्य बाहर के ही उतरे जा रहे हैं। यह आंख का बंद होना नहीं है। आंख के बंद होने का अर्थ है : जो अबतक देखा है समझा है जाना है या मना है उस से मुक्ति, स्वप्नों से, विचारों से मुक्ति। विचार और दृश्य के विलीन होने से आंख बंद होती हैं। और फिर जो प्रकट होता है, वह शाश्वत चैतन्य है। वही है सत्, वही है चित्त, वही है आनंद। इन आंखों का सब खेल है। आंख बदली और सब बदल जाता है।

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