Monday, October 26, 2015

धनि न जाये...

धनि न जाये किनको धूतयो , जो कीजे अनेक धूतार |
तुम चैन ऊपर के कई करो , पर छूटे न क्यों ए विकार ||

परमात्मा को किसी भी प्रकार हम अंधकार में नही रख सकते याने परमात्मा के सामने झूठ के पर्दे से चाह कर भी हम अपने अंतःकरण को छुपा  नही सकते चाहे हम कितने  भी यत्न कर लें  अर्थात हम चाहे कितने भी बहरी यत्न कर लें जैसे कई लोग ओना बहरी आवरण ऐसा बना लेते  हैं जिस से लोग उन्हें संत समझ कर उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं कई लोग केश कटा लेते हैं कई बनो में निवास करते  हैं कई जल में बैठे रहते हैं कई अग्नि के  सामने  तप करते हैं कई बड़े बड़े भंडारे लगते हैं कई लोग कई तरह के भोग वगेरा तडयार करते हैं और मूर्तियों के सामने रख के कहते हैं की वह प्रसाद हो गया कई लोग कई तरह के धर्मग्रंथो का पाठ करने में उम्र बिता देते हैं कई परिक्रमा करने में ही मुक्ति समझते हैं कई अनेको प्रकार से तिलक व् माला पहन के शरीर को सजाते हैं..पर इन सबसे प्रमातमाँ को नही ठगा जा सकता वो तो केवल अंतःकरण में विरह की अग्नि से शुद्धि  कर के उनको हृदये रूपी सिंघासन पे बैठाने से ही आत्म के साथ एक रस होते हैं...

प्रणाम जी

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