Friday, October 30, 2015

जूठा खेल

सनेह आए जूठ ना रहे,जो पकड़ बैठे है हम ।
ए जूठ नजरो तब क्यों रहे,जब याद आवे सनेह खसम ।।

मेरे प्यारे साथजी ! जब हमें अपने प्राण प्रियतम परमात्मा के प्रेम की याद आएगी तब ये जूठा खेल हमारी नजरो के सामने नहीं रहेगा,जो हम सच मानकर बैठे हुए है । धनी के प्रेम की याद तो तब आएगी जब हम इस जूठे खेल की बाते ना करे और अपने परमधाम के आनंद की बाते करे ।जो हमारा अपना है ।जिस परमधाम अद्वैत में सदा इश्क की ही लीला होती है वो परमात्मा का प्यार,लाड ही हमें अपने मूल तन में उठाएगी ।
एही अपनी जागनी,जो याद आवे निज सुख ।
इश्क याहि सो आवही,याहि सो होइए सनमुख ।।
इश्क का आना,विरह का पैदा होना वो सब परमात्मा के हाथ में ही है और वो सब परमात्मा ने हुकम के स्वरुप से इस जागनी ब्रह्माण्ड में हम सबको दे रखा है ।
अब तो हमारी ही कमजोरी है की हम ये मौका जानबुझकर खो रहे है ।
चलो साथजी ! हाथ आया अवसर केम भूलिए ।।

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment