Monday, February 12, 2018

संसार कारागार है, अगर तुम खुद स्वतंत्र नहीं हो। बहुत कैदी हैं।

ओर अगर स्वतंत्र हो तो कोई कैदी नहीं है ।

मेरी दृष्टिं में यहां कोई पापी नहीं है, प्रकाश की दृष्टिं में जैसे अंधेरा नहीं है। इसलिए मैं कुछ छोड़ने को नहीं कहता हूं। हीरे पा लो, मिट्टी तो अपने आप छूट जाती है। जो तुमसे छोड़ने को कहते हैं, वे ना समझ हैं। अध्यात्म में केवल पाया जाता है, त्यागना नहीं होता। एक नयी सीढ़ी पाते हैं, तो पिछली सीढ़ी अपने आप छूट जाती है। जो नयी सीढ़ी को पाए बिना पुरानी को छोड़ देते हैं, वो गिर जाते है ।छोड़ना नकार त्मक है। उसमें पीड़ा है, दुख है, दमन है। पाना सत्तात्मक है। उसमें आनंद है। पहले पहली सीढ़ी ही छूटती है, पर उसके पूर्व दूसरी सीढ़ी पा ली गयी होती है। उसे पाकर ही- उसे पाया जानकर ही-पहली सीढ़ी छूटती है। आनंद को पाओ, तो जो पाप जैसा दिखता है, वह अनायास चला जाता है।
सच ही, उस एक के पाने में सब पा लिया जाता है। उस सत्य के आते ही सब अपने से विलीन हो जाते हैं। जो प्रकाश जानते हैं उनके लिए अंधेरे की कोई सत्ता नहीं है।
प्रकाश को अपने भीतर जगाओ । *आनंद को अपने भीतर अनुभव करो*। अपने सत्य के प्रति जागो और फिर पाओगे कि अंधेरा तो कहीं है ही नहीं। अंधेरा हमारी निद्रा है और जागरण प्रकाश बन जाता है।

 ऐसा नहीं करने वालो में ऐसा कौन है, जो 'कैदी' नहीं है!

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