Tuesday, February 13, 2018

परमात्मा है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'आत्मा है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'मृत्यु के बाद जीवन है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'जीवन में कोई अर्थ है?'- हमें ज्ञात नहीं।
'हमें ज्ञात नहीं' यह आज का पूरा जीवन है। इन तीनों शब्दों में हमारा पूरा ज्ञान समा जाता है। 'पर' के संबंध में, पदार्थ के संबंध में जानने की हमारी दौड़ का अंत नहीं है। पर 'स्व' के, चैतन्य के संबंध में हम प्रतिदिन अंधेरे में डूबते जाते हैं।
बाहर प्रकाश मालूम होता है, भीतर घुप्प अंधेरा । नहीं का ज्ञान है, है पर अज्ञान है।
और आश्चर्य यह है कि *है* प्रकाशित है फिर भी प्रकाश की खोज अंधेरे में है। "है" पर आंख भर पहुंच जाये और सब प्रकाशित हो जाता है।
'पर' आंख न हो, तो वह 'स्व' पर खुल जाती है।
बाहर उसे आधार न हो, तो वह स्व पर आधार खोज लेती है।
अंतर्मुखी चैतन्य की दृष्टि ही समाधि है।
समाधि सत्य का द्वार है। उसमें यह नहीं कि सब प्रश्नों के उत्तर मिल जाते हैं, वरन् सब प्रश्न लय हो जाते हैं। प्रश्नों का लय हो जाना ही असली उत्तर है। जहां प्रश्न नहीं और केवल चैतन्य है- शुद्ध चैतन्य है, वही उत्तर है, वही ज्ञान है।

इस ज्ञान को पाये बिना जीवन नहीं है केवल मृत्यु है।

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