मैं पाप करने से कैसे बच सकती हूं ???
मैं पाप नही करूंगा, यही सोच तुम्हे पापी बना देती है .."मैं पाप नही करूंगा" भाव के पीछे जो बोलने वाला है वही तो पापी है, कौन है वो ?
वो अहं है, यही पापी है होने में रहता है, यही वैरागी होने में, ग्यानी होने में, धर्मी होने में, गूरू होने में, शिष्य होने में, भक्त होने में , परमात्मा से प्रेम करके प्रेमी होने में, सब में यही रहता है | यही जड़ है पापी होने की या पाप करने की | अगर पाप से बचना चाहते हो तो पापी को समाप्त करो.. अहं को समाप्त करो, जब पाप करने वाला ही नही रहेगा तो पाप कौन करेगा...
*अहं का अर्थ अहंकार से नही है, अहं जड़ है अहंकार पत्ते के समान है*
*ए मैं मैं क्यों ए मरत नहीं,और कहावत है मुरदा। आड़े नूर जमाल के, एही है परदा।*
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