प्रश्न - *आप कहते हो की ध्यान या चितवनी मन का खेल है..तो आत्मिक ध्यान या चितवनी कया है??*
उत्तर- ध्यान का सन्धि विछेद.. अनुभव और आनंद |
ध्यान में जो बाहर या अंदर दिख रहा है वो सब ध्यान में होने वाले अनुभव हैं..ये सब मिथ्या है..मनका खेल है..यह बाह्य विषय है..
और जो ध्यान में आनंद महसूस होता है वह आपका आन्तरिक विषय है.. यही सत्य है , यही पकड़ना है, यही ध्यान का उदेश्य है..इसी में आगे बढ़ोगे तो सवंय का ध्यान होगा यही चितवनी है..
यह भेद ना जान पाने के कारण हम ध्यान में होने वाले अनुभव को ही आनंद समझ लेते है और आत्मिक विषय से वंचित रह जाते हैं..
*आनंद को मित्थया में ही आरोपित करके मित्थया में ही आनंद ढूंडने में जन्म गवा देते है..*
केवल आनंद की और मुख रखो वही तुम हो
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