मनुष्य को अपना सारा जीवन परमात्मा की खोज में दौड़ते हुए नहीं व्यर्थ करना है, मेरी दृष्टि में अगर वो अपने आप को पूरी तरह जान ले तो वो अभी और इसी वक्त परमात्मा है। स्वयं का सम्पूर्ण आविष्कार ही एकमात्र विकास है। कुछ ऐसा नहीं जो बाहर से खोजा जा सके। यह कुछ ऐसा है जो अन्दर से अनुभव किया जाता है। दौड़ नहीं लगानी है, डूबना है, गहरा ओर गहरा, खुदमे । फिर वो सबकुछ पालोगे जिसके लिए दौड़ रहे थे । तब पता चलेगा कि दौड़ना नहीं था ठहरना था ।
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