जीवन का पथ अंधकार पूर्ण है। लेकिन स्मरण रहे कि इस अंधकार में दूसरों का प्रकाश काम नही आ सकता। प्रकाश अपना ही हो, तो ही साथी है। जो दूसरों के प्रकाश पर विश्वास कर लेते हैं, वे धोखे में पड़ जाते हैं।
एक वृद्ध ब्राह्मंण था। वह अंधा हो गया, तो उसके पुत्रों ने उसकी आंखों की शल्य चिकित्सा करनी चाही। लेकिन उसने अस्वीकार कर दिया। वह बोला, ''मुझे आंखों की क्या आवश्यकता? तुम आठ मेरे पुत्र हो,आठ कुलबधु हैं, तुम्हारी मां है, ऐसे चौंतीस आंखें मुझे प्राप्त हैं, फिर दो नहीं हें, तो क्या?'' पिता ने पुत्रों की सलाह नहीं मानी। फिर एक रात्रि अचानक घर में आग लग गई। सभी अपने-अपने प्राण लेकर भागे। वृद्ध की याद किसी को भी न रही। वह अग्नि में ही भस्म हो गया। बाहर आश्रय लेने से उनका ये परिणाम हुआ, ओर क्या हम भी उस वृद्ध की नहीं है??
इसलिए तुम स्वयं ज्ञान हो, जो बाहर का विषयनहीं है वही ज्ञान है, ज्ञान स्वयं का चक्षु है। उसके अतिरिक्त कोई शरण नहीं है।''
सत्य न तो शास्त्रों से मिल सकता है और न ही प्रवचनों से। उसे पाने का द्वार तो स्वयं में ही है। स्वयं में जो खोजते हैं, केवल वे ही उसे पाते हैं। स्वयं पर श्रद्धा ही असहाय मनुष्य का एकमात्र संबल है।
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Wednesday, July 4, 2018
आश्रय
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