Monday, February 1, 2016

वाणी

कोट सेवक करो नाम निकालो , इस्ट चलाओ बडाई |
सेवा कराओ सतगुरु केहेलाओ , पर अलख न देवे लखाई ||

चाहे संसार में करोड़ो सेवक या शिष्य बना लो या अपना नाम परिवर्तित कर के कोई भी धर्म सम्बन्धी या किसी भी भगवान के नाम पे रख लो {आमतोर पे देखा गया है की साधू के वेश धारण करने के बाद उनके गुरु उनका नाम परिवर्तित करके धर्म सम्बन्धी  नाम रख देते हैं }चाहे अपने नाम या या अपने मन से नाम रख कर अनेक पन्थ या सम्प्रदायों का निर्माण क्र लो , पर इसका अर्थ ये बिलकुल मत समझ लेना की ऐसा करने से तुम्हे परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी या तुम परमात्मा के मार्ग पे चल पड़े हो या तुम्हे परमात्मा का मार्ग मिल गया है और तुम्हे इस के अपना लक्षे मिल जायेगा , चाहे तुम सतगुरु बन कर जीवन भर अपने शिष्यों से अपनी सेवा करवाते रहो पर इन सब कार्यो से तुम्हे परमात्मा का बोध नही होगा क्योंकि ये सब तो तुम्हारे कर्म है जो तुम्हारे कर्म जाल में कुछ धागे और बन देते है , ये तुम्हारे शरीर सम्बन्धित  कार्य हैं कोई मार्ग नही है, कोई साधन नही है , इनसे आत्मबोध नही होगा , हो भी नही सकता जब तक इन सबसे पार पाके अंतर में खोज नही करोगे परमात्मा रूपी आनंद की प्राप्ति नही हो सकती ..इसलिए ये मान गुमान और अपने दुआरा  बनाये गये ये झूठे ज्ञान का तुम अति सीघ्र उसी प्रकार त्याग करदो जिस प्रकार फल पकने के बाद अपने पेड़
को त्याग देता है और केवल शुद्ध सत्ये के मार्ग को अपनाओ जिस से तुम्हे शुद्ध सत्ये आनंद की प्राप्ति हो सके ....

प्रणाम जी 

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