Wednesday, February 10, 2016

विवेकपुर्ण श्रद्धा

सुप्रभात जी

श्रद्धा होना सही है परन्तु श्रद्धा के साथ विवेक ना होतो वह अंधश्रद्धा बनकर घोर विनाश का कारण बन जाती है...
एकबार एक भक्त तिर्थ यात्रा गया l जिस मंदिर में उसे दर्शन के लिए जाना था, वह मंदिर नजदिक  आ चुका  था l उसके पैर में जुते थे l तो उसने सोचा की मंदिर के पास जुते ले जाने से वहाँ चोरी हो जायेंगे इससे अच्छा है कि  यहीं रास्ते में किसी पत्थर  के नीचे रख देते है l उसने वैसा ही किया l लेकिन बादमें  उसके मन में शंका आयी की इसी पत्थर के नीचे ही अपने जुते है यह कैसा पहचान पायेंगे ? तो उसने क्या किया उस पत्थर को थोडासा सिंदुर लगा दिया ताकि बाद में उसके जुतेकी जगह अनायास पहचान सके l वह भक्त आगे चल पड़ा  l मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन किये , एक-दो दिन वहाँ रुका l वापसी की यात्रा के लिए वह निकल पड़ा l जहाँ उसने अपने जुते रखे थे वहाँ बड़ी भारी भीड़ को  देखकर आश्चर्ये चकित हो गया l जिस पत्थर के नीचे उसने अपने जुते रखे थे उस पत्थर की लोग पूजा कर रहे थे  , फूल अर्पण कर रहे थे , अगरबत्ती घुमा रहे थे l हाथ जोड़कर मन्नोती मांग रहे थे l वह यह सब एक जगह खड़े होकर देख रहा था ,वह  बड़ा हैरान था l लेकिन वह कुछ बोल नहीं पा रहा था l  यह दृष्टांत इस बात का प्रमाण देता है कि  आज के घोर कलियुग में  जैसे उस पत्थर पर लगा हुवा सिंदुर देखकर लोगोंने  उसपर फूल चढ़ाना शुरू किया  और इतनाही नहीं उस जगह को  पूजा का स्थान मानकर एक जुते की पूजा करना आरंभ किया l ऐसा ही आज हो रहा है l किसी का चोलारूपी सिंदुर देखकर , किसी की जटा देखकर , किसी का आश्रम देखकर , किसी का थाटबाट देखकर , किसीके पीछे की भीड़ देखकर , तो किसी की  सत्य को तोड़ मरोड़कर  लोगोंको बात  बताने की कला को देखकर, किसी की वेशभूषापर आकृषित होकर , किसीके अधूरे ज्ञानपर फ़िदा होकर  विभिन्न समस्यायोंसे परेशान लोग  ऐसे व्यपारियों को संत , परम संत , जगद्गुरु  मानकर सच्चे परमात्मा को त्याग कर उन्हें भज रहे है, पूज रहे  है l इसलिय श्रद्धा के साथ विवेक जागृती परम आव्यशक है..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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