सुप्रभात जी
हे साधुजन ! सर्व प्रथम स्वयं (आत्मा) को पहचानो, क्योंकि स्वयंको पहचाने बिना कौन कह सकता है कि मैंने परब्रह्म परमात्माको पहचान लिया है.
यदि शरीर छोडनेके पश्चात् अपने (आत्माके) मूल घरको ढूँढने लगोगे, तब किस स्थानमें ठहर पाओगे ? क्योंकि जब तक आत्मा अपने मूल घरको प्राप्त नहीं कर लेती, तब तक भ्रममें पड.कर भवसागरमें ही भटकती रहती है.पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पाँचों तत्त्वोंको मिलाकर इस नश्वर ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना की गई है.
हे साधुजन ! अज्ञाानरूपी निद्राको दूर कर जब स्वयंको पहचानोगे, तब ज्ञाात होगा कि इस ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना किस प्रकार हुई है ? तब तुम्हें स्वयं अपने मूल घर परमधामकी प्राप्ति (अनुभूति) हो जाएगी तथा पूर्णब्रह्म परमात्मा के दर्शन भी होंगे...
प्रणाम जी
हे साधुजन ! सर्व प्रथम स्वयं (आत्मा) को पहचानो, क्योंकि स्वयंको पहचाने बिना कौन कह सकता है कि मैंने परब्रह्म परमात्माको पहचान लिया है.
यदि शरीर छोडनेके पश्चात् अपने (आत्माके) मूल घरको ढूँढने लगोगे, तब किस स्थानमें ठहर पाओगे ? क्योंकि जब तक आत्मा अपने मूल घरको प्राप्त नहीं कर लेती, तब तक भ्रममें पड.कर भवसागरमें ही भटकती रहती है.पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश इन पाँचों तत्त्वोंको मिलाकर इस नश्वर ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना की गई है.
हे साधुजन ! अज्ञाानरूपी निद्राको दूर कर जब स्वयंको पहचानोगे, तब ज्ञाात होगा कि इस ब्रह्माण्डरूपी महलकी रचना किस प्रकार हुई है ? तब तुम्हें स्वयं अपने मूल घर परमधामकी प्राप्ति (अनुभूति) हो जाएगी तथा पूर्णब्रह्म परमात्मा के दर्शन भी होंगे...
प्रणाम जी
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