सुप्रभात जी
इस शरीर में स्थित आत्मा (सत्य) ही परमात्मा (सत्य) को प्राप्त कर पाती है। जब आत्मा को परमात्मा के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का संशय नहीं रह जाता, तब अन्तरात्मा की पुकार परमात्मा तक पहुँचती है।
मैं (झूठ) का जल बहुत गहरा है। यह हमारे और परमात्मा के बीच उस परदे की तरह है, जो परमात्मा का दीदार नहीं होने देता। जब तक इसका अस्तित्व बना रहता है, तब तक हमारी अन्तरात्मा की पुकार परमात्मा तक नहीं पहुँच पाती।
यह स्पष्ट है कि बेशक होकर मैं (अहम् याने झूठ) का परित्याग किये बिना परमात्मा से मिलन सम्भव ही नहीं है।
satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
इस शरीर में स्थित आत्मा (सत्य) ही परमात्मा (सत्य) को प्राप्त कर पाती है। जब आत्मा को परमात्मा के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का संशय नहीं रह जाता, तब अन्तरात्मा की पुकार परमात्मा तक पहुँचती है।
मैं (झूठ) का जल बहुत गहरा है। यह हमारे और परमात्मा के बीच उस परदे की तरह है, जो परमात्मा का दीदार नहीं होने देता। जब तक इसका अस्तित्व बना रहता है, तब तक हमारी अन्तरात्मा की पुकार परमात्मा तक नहीं पहुँच पाती।
यह स्पष्ट है कि बेशक होकर मैं (अहम् याने झूठ) का परित्याग किये बिना परमात्मा से मिलन सम्भव ही नहीं है।
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