सुप्रभात जी
जब हम अल्प को पूर्ण मान लेते हैं तो यह अग्यान का परिचायक है..अग्यान विकारो का जनक है ,वाद विवाद , समप्रदायवाद आदि अनेक विकार इस से उत्पन्न होते है..अब यह जान्ना आवयश्क है की अल्प और पुर्ण कया है ..
*पूर्ण बृह्म परमात्मा पूर्ण है..कयोंकी पूर्ण में कभी अभाव नही हो सकता इसलिय परमात्मा मे किसी भी वस्तु का अभाव नही है अगर हम ये कहें की वो ये नही है या वो नही है तो यह सोचना उचित नही है कयोंकी वो सब कुछ है कयोंकी वो पूर्ण है ..
वो श्रिजी साहिब जी भी है ,वो कृष्ण भी है ,वो राम भी है ,वो अल्लाह भी है वो सचिन भी है ,वो संजय भी है , वो विपुल भी है ,वो तृप्ता भी है ,वो प्रवीण भी है, वो पूर्ण है इसलिय वो सब है पर ये सब मे वो ""भी"" है ..वो इन अल्प मे"" ही "" नही है ,,,
जैसे वो कृष्ण भी है पर वो कृष्ण ही नही है ,वो श्रिजीसाहीबजी भी है पर केवल ये ही नही है इसलिय वाणी में उनको कहीं कृष्ण कही साहीब कही अल्लाह कही इमाम आदी आदी काहा है और फीर शब्दातीत कह दिया गया..विकार जब उत्पन्न होते हैं जब हम "भी" को "ही" मान लेते हैं इसलिय हम भी में अटक कर "ही" तक नही पहूंच पाते और "भी" पर वाद विवाद करके जीवन व्यर्थ गवां देते है यही अग्यान है..इसलिय जहां हम अटक गये हैं उस से निकल कर हमे पुर्णबृह्म को जान्ने का प्रयास करना चाहिय...
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
जब हम अल्प को पूर्ण मान लेते हैं तो यह अग्यान का परिचायक है..अग्यान विकारो का जनक है ,वाद विवाद , समप्रदायवाद आदि अनेक विकार इस से उत्पन्न होते है..अब यह जान्ना आवयश्क है की अल्प और पुर्ण कया है ..
*पूर्ण बृह्म परमात्मा पूर्ण है..कयोंकी पूर्ण में कभी अभाव नही हो सकता इसलिय परमात्मा मे किसी भी वस्तु का अभाव नही है अगर हम ये कहें की वो ये नही है या वो नही है तो यह सोचना उचित नही है कयोंकी वो सब कुछ है कयोंकी वो पूर्ण है ..
वो श्रिजी साहिब जी भी है ,वो कृष्ण भी है ,वो राम भी है ,वो अल्लाह भी है वो सचिन भी है ,वो संजय भी है , वो विपुल भी है ,वो तृप्ता भी है ,वो प्रवीण भी है, वो पूर्ण है इसलिय वो सब है पर ये सब मे वो ""भी"" है ..वो इन अल्प मे"" ही "" नही है ,,,
जैसे वो कृष्ण भी है पर वो कृष्ण ही नही है ,वो श्रिजीसाहीबजी भी है पर केवल ये ही नही है इसलिय वाणी में उनको कहीं कृष्ण कही साहीब कही अल्लाह कही इमाम आदी आदी काहा है और फीर शब्दातीत कह दिया गया..विकार जब उत्पन्न होते हैं जब हम "भी" को "ही" मान लेते हैं इसलिय हम भी में अटक कर "ही" तक नही पहूंच पाते और "भी" पर वाद विवाद करके जीवन व्यर्थ गवां देते है यही अग्यान है..इसलिय जहां हम अटक गये हैं उस से निकल कर हमे पुर्णबृह्म को जान्ने का प्रयास करना चाहिय...
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