इलम चातुरी खूबी अंग की, मोहे एही पट लिख्या अंकूर।
एही न देवे देखने, मेरे दुलहे के मुख का नूर।।
(श्री प्राणनाथ वाणी)
ज्ञान सीख लेने पर वह बुद्धि कौशल से प्रस्तुत किया जाता हैं जिसका प्रतिबिम्ब अहंकार तक पहुंच कर मान व प्रशंषा की कामना का रुप धारण कर के हृदये के अंग बुद्धि पे जहरीले शर्प की भांति कुंडली मार के बैठ जाता है जो निरंतर कामना का जहर उगलता रहता है और जब मान की कामना में कोई अड़चन हो जाती है तो उस शर्प का भाई क्रोध उत्पन हो जाता हैं , यही सीखा हुआ ज्ञान वास्तविक ज्ञान को हृदये तक नही पहुंचने देता यही उधार का ज्ञान वाद विवाद का कारण बनता है हमे वही सच लगता है जो हमने कहीं सीखा या पढ़ा होता है उसके अलावा हम कीसी की बात ग्रहण नही करते चाहे वह परम सत्ये ही क्यों न हो यही ज्ञान की चतुराई हमे अहंकार से आगे नही जाने देती जहाँ शुद्ध आत्मा का निवास है जिसे अंकुर कहा जाता हैं अब ध्यान देने वाली बात है की यही अंकुर सत्ये ज्ञान का अंकुर हैं जिस पर हमने बुद्धि की चतुराई को इस प्रकार बैठा दिया हैं की हमारे हमारे जीव की पहुंच उस अंकुर तक नही पहुंच पाती जिस कारण सत्ये ज्ञान अंकुरित नही हो पता , सीधा सा उदाहरण हैं की सबने सीख रखा हैं की हम ब्रह्मआत्मा हैं जब तक आपको अहसास नही हो जाता की आप ब्रह्म आत्मा हैं यह ज्ञान उधार का हैं तब तक आप उन्ही बातो पे लड़ते रहोगे जो आपने सीख रखी हैं या जो नाम जिसे हम तारतम "मंत्र" कह कर जपते हैं जिसने जो भी सीखा हैं उसके आलावा दूसरे को नही सहन कर सकते ,लडने लगते हो.. यही पर्दा हैं जो अंकुर याने आत्म दृष्टि तक जीव की दृष्टि नही जाने देती इसी कारण हम परमात्मा का दीदार नही कर पा रहे और बड़ी बड़ी दलील देते हैं की मैं परमात्मा के लिए सारी रात रोया या रोयी क्या बच्चो जैसी बात है हमसे ज्यादा तो बच्चे रोते है सब रो रहे हैं संसार में अपने अपने आनंद के लिए हम भी रो लिए तो क्या हुआ बस कहीं से सुन लिया की परमात्मा की याद में गिरा आंसू मोती बन जाता हैं फ्ला ढिमका आदि आदि बस सीख रखा है तो सत्य मान बैठे है..अरे आत्म दृष्टि से दृष्टि मिला के तो देखो सीधी परमात्मा से दृष्टि मिल जाएगी जो तुम्हारे पास हैं याने जो स्वास नली से भी नजदीक हैं उसके लिए रोते हो ,क्योंकि ज्ञान चतुराई में मूल ज्ञान के अंकुर को पनपने नही देते.यही सबसे बड़ा रोग हैं जो परमात्मा का दीदार और हमारे बीच पर्दा बना हुआ हैं....जिस दिन मूल ग्यान याने सत्य ग्यान का अंकूर फूटने लगेगा उस दिन यह उधार का ग्यान अग्नी की भांती ताप देने वाला लगेगा और इस से दूर भागोगे ..तभी बिना विलंब परमात्मा को पा लोगे ...
प्रणाम जी
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