सुप्रभात जी
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में जब ध्यान करता हू तो तूं बन्दर की भांती कयों भागता फिरता है. अरे मूर्ख मन! तू कहाँ जाता है, यह संसार मायामात्र है और इतने काल तू जगत् में भटकता रहा, पर कहीं तुझको शान्ति न हुई, वृथा भागता रहा । हे मूर्ख मन! सत्यविषय को त्यागकर भोगों की ओर भागता है सो अमृत को त्यागकर विषका बीज बोता है, यह सब तेरी प्रयास दुःखोंके कारण हैं । जैसे कुशवारी अपना घर बनाकर आप ही को बन्धन करती है वैसे ही तू भी आपको आप संकल्प उठाकर बन्धन करता है । अब तू संकल्प के संसरने को त्यागकर आत्मपद में स्थित हो ताकि तुझको शान्ति हो । हे मन जिह्वा के साथ मिलकर जो तू शब्द करता है वह दर्दुर के शब्दवत् व्यर्थ है । कानों के साथ मिलकर सुनता है तब शुभ अशुभ वाक्य ग्रहण करके मृग की भांती नष्ट होता है, त्वचा के साथ मिलकर जो तू स्पर्श की इच्छा करता है सो हाथी की भांती नष्ट होता है, रसना के स्वाद की इच्छा से मछली की भांती नष्ट होता है और गन्ध लेने की इच्छा से भँवरे की भांती नष्ट हो जावेगा । जैसे भँवरा सुगन्ध के की इच्छा से फूल में फँस मरता है तैसे तू फँस मरेगा और सुन्दर स्त्रियों की इच्छा से पतंगे की भांती जल मरेगा । हे मूर्ख मन! जो एक इन्द्रिय का भी स्वाद लेते हैं वे नष्ट होते हैं तू तो पञ्चविषय का सेवनेवाला है क्या तेरा नाश न होगा ।इससे तू इनकी इच्छा त्याग कि तुझको शान्ति हो । अब तू शांत होकर बैठ और परमात्मा का ध्यान कर जिससे तेरी जन्मों की भरमना नष्टहोकर तुझे परमपद मिले....
Www.facebook.com/kevalshudhsatye
प्रणाम जी
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में जब ध्यान करता हू तो तूं बन्दर की भांती कयों भागता फिरता है. अरे मूर्ख मन! तू कहाँ जाता है, यह संसार मायामात्र है और इतने काल तू जगत् में भटकता रहा, पर कहीं तुझको शान्ति न हुई, वृथा भागता रहा । हे मूर्ख मन! सत्यविषय को त्यागकर भोगों की ओर भागता है सो अमृत को त्यागकर विषका बीज बोता है, यह सब तेरी प्रयास दुःखोंके कारण हैं । जैसे कुशवारी अपना घर बनाकर आप ही को बन्धन करती है वैसे ही तू भी आपको आप संकल्प उठाकर बन्धन करता है । अब तू संकल्प के संसरने को त्यागकर आत्मपद में स्थित हो ताकि तुझको शान्ति हो । हे मन जिह्वा के साथ मिलकर जो तू शब्द करता है वह दर्दुर के शब्दवत् व्यर्थ है । कानों के साथ मिलकर सुनता है तब शुभ अशुभ वाक्य ग्रहण करके मृग की भांती नष्ट होता है, त्वचा के साथ मिलकर जो तू स्पर्श की इच्छा करता है सो हाथी की भांती नष्ट होता है, रसना के स्वाद की इच्छा से मछली की भांती नष्ट होता है और गन्ध लेने की इच्छा से भँवरे की भांती नष्ट हो जावेगा । जैसे भँवरा सुगन्ध के की इच्छा से फूल में फँस मरता है तैसे तू फँस मरेगा और सुन्दर स्त्रियों की इच्छा से पतंगे की भांती जल मरेगा । हे मूर्ख मन! जो एक इन्द्रिय का भी स्वाद लेते हैं वे नष्ट होते हैं तू तो पञ्चविषय का सेवनेवाला है क्या तेरा नाश न होगा ।इससे तू इनकी इच्छा त्याग कि तुझको शान्ति हो । अब तू शांत होकर बैठ और परमात्मा का ध्यान कर जिससे तेरी जन्मों की भरमना नष्टहोकर तुझे परमपद मिले....
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