कलाम अल्ला या हदीसें, सास्त्र पुरान या वेद।
एकसब सुख लेवें मोमिन, हक रसना के भेद।।
(सिंधी, 16-19)
हिन्दु और मुसलमान दोनो के परमात्मा एक ही हैं.
मात्र भाषा भेद के कारण परमात्मा में भेद हो गया..
न काष्ठे विधते देवा न पाषाणे न म्रणमये| भावे हि विधते देवस्तस्माद भावो हि कारणम|| (गरुण पुराण – धर्मकाण्ड – प्रेतखण्ड 38:13)
वह देव ना तो लकड़ी मे, न पत्थर मे, ना मिट्टी मे हैं| वे तो भाव मे विधमान हैं| जहा भाव करे वहा ही परमात्मा सिद्ध होता हैं|
इसी प्रकार महाभारत/गीता मे देखे-
अवजानन्ति मां मूढ़ा मानुषी तनुमाश्रितम| परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम|| (महाभारत 6:31:11) (गीता 9:11)
मेरे परम भावो को न जानने वाले मूर्ख लोग मुझे प्राणियो मे महान परमात्मा को मनुष्य शरीरधारी समझकर मेरा अपमान करते हैं
१. ऋग्वेद १.१६४.४६ – उसी एक परमात्मा को इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्या, सुपर्ण, गरुत्मान, यम और मातरिश्वा आदि अनेक नामों से कहते हैं.
२. यजुर्वेद ३२.१- अग्नि, आदित्य, वायु, चंद्रमा, शुक्र, ब्रह्मा, आप: और प्रजापति- यह सब नाम उसी एक परमात्मा के हैं.
३. ऋग्वेद १०.८२.३ और अथर्ववेद २.१.३- वह परमात्मा एक हैं और सब देवों के नामों को धारण करने वाला हैं, अर्थात सब देवों के नाम उसी के हैं.
४. ऋग्वेद २.१ सूक्त में अग्नि शब्द को ज्ञानस्वरूप परमात्मा का वाचक के रूप में संबोधन करते हुए कहाँ गया हैं की हे अग्नि, तुम इन्द्र हो, तुम विष्णु हो, तुम ब्रह्मणस्पति, वरुण, मित्र, अर्यमा, त्वष्टा हो. तुम रूद्र, पूषा, सविता, भग, ऋभु , अदिति, सरस्वती,आदित्य और ब्रह्मा हो.
५. अथर्ववेद १३.४ (२), १५-२०- जो व्यक्ति इस परमात्मा देव को एक रूप में विद्यमान जनता हैं, जो की वह न दूसरा हैं, न तीसरा हैं और न चौथा हैं ऐसा जानता हैं, जोकि वह पांचवा हैं, न छठा हैं और न सांतवा हैं ऐसा जानता हैं, जोकि वह न आठवां हैं, न नवां हैं और न दसवां हैं ऐसा जानता हैं, वह सब कुछ जानता हैं. वह चेतन और अचेतन संपूर्ण रहस्य को जन लेता हैं. उसी परमात्मा देव में यह सारा जगत समाया हुआ हैं. वह देव अत्यंत सहन शक्ति वाला हैं. वह एक ही हैं, अकेला ही वर्तमान हैं, वह एक ही है
कुरान पक्ष...
मुसलमान एक ही परमात्मा को मानते हैं, जिसे वोअल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में परमात्मा को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। मुसलमानों के अनुसार परमात्मा अद्वितीय हैः उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में परमात्मा की एक विलक्षण अवधारणा पर ज़ोर दिया गया है। साथ में यह भी माना जाता कि उसकी पूरी कल्पना मनुष्य के बस में नहीं है।
कुरान में...
कहो: है परमात्मा एक और अनुपम।
है परमात्मा सनातन, हमेशा से हमेशा तक जीने वाला।
उसकी न कोई औलाद है न वह खुद किसी की औलाद है।
और उस जैसा कोई और नहीं॥”
(कुरान, सूरत ११२, आयते १ - ४)
सूरए ज़ुमर की 66वीं आयत सभी को परमात्मा की उपासना का निमंत्रण देते हुए कहती है केवल परमात्मा की उपासना करो और कृतज्ञों में से हो जाओ। अर्थात सभी का पूज्य केवल और केवल अनन्य परमात्मा होना चाहिए।
क़ुरआने मजीद सूरए ज़ोमर की आयत क्रमांक 64 से 66 में अनेकेश्वरवाद और एकेश्वरवाद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है। कह दीजिए कि हे अज्ञानियो! क्या तुम मुझसे यह कहते हो कि मैं परमात्मा के अतिरिक्त किसी और की उपासना करूँ? For more click this👇🏼👇🏼
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दोऊ दौड करत हैं, हिन्दू या मुसलमान।
ए जो उरझे बीच में, इनका सुंन मकान।।
प्रणाम जी
एकसब सुख लेवें मोमिन, हक रसना के भेद।।
(सिंधी, 16-19)
हिन्दु और मुसलमान दोनो के परमात्मा एक ही हैं.
मात्र भाषा भेद के कारण परमात्मा में भेद हो गया..
न काष्ठे विधते देवा न पाषाणे न म्रणमये| भावे हि विधते देवस्तस्माद भावो हि कारणम|| (गरुण पुराण – धर्मकाण्ड – प्रेतखण्ड 38:13)
वह देव ना तो लकड़ी मे, न पत्थर मे, ना मिट्टी मे हैं| वे तो भाव मे विधमान हैं| जहा भाव करे वहा ही परमात्मा सिद्ध होता हैं|
इसी प्रकार महाभारत/गीता मे देखे-
अवजानन्ति मां मूढ़ा मानुषी तनुमाश्रितम| परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम|| (महाभारत 6:31:11) (गीता 9:11)
मेरे परम भावो को न जानने वाले मूर्ख लोग मुझे प्राणियो मे महान परमात्मा को मनुष्य शरीरधारी समझकर मेरा अपमान करते हैं
१. ऋग्वेद १.१६४.४६ – उसी एक परमात्मा को इन्द्र, मित्र, वरुण, अग्नि, दिव्या, सुपर्ण, गरुत्मान, यम और मातरिश्वा आदि अनेक नामों से कहते हैं.
२. यजुर्वेद ३२.१- अग्नि, आदित्य, वायु, चंद्रमा, शुक्र, ब्रह्मा, आप: और प्रजापति- यह सब नाम उसी एक परमात्मा के हैं.
३. ऋग्वेद १०.८२.३ और अथर्ववेद २.१.३- वह परमात्मा एक हैं और सब देवों के नामों को धारण करने वाला हैं, अर्थात सब देवों के नाम उसी के हैं.
४. ऋग्वेद २.१ सूक्त में अग्नि शब्द को ज्ञानस्वरूप परमात्मा का वाचक के रूप में संबोधन करते हुए कहाँ गया हैं की हे अग्नि, तुम इन्द्र हो, तुम विष्णु हो, तुम ब्रह्मणस्पति, वरुण, मित्र, अर्यमा, त्वष्टा हो. तुम रूद्र, पूषा, सविता, भग, ऋभु , अदिति, सरस्वती,आदित्य और ब्रह्मा हो.
५. अथर्ववेद १३.४ (२), १५-२०- जो व्यक्ति इस परमात्मा देव को एक रूप में विद्यमान जनता हैं, जो की वह न दूसरा हैं, न तीसरा हैं और न चौथा हैं ऐसा जानता हैं, जोकि वह पांचवा हैं, न छठा हैं और न सांतवा हैं ऐसा जानता हैं, जोकि वह न आठवां हैं, न नवां हैं और न दसवां हैं ऐसा जानता हैं, वह सब कुछ जानता हैं. वह चेतन और अचेतन संपूर्ण रहस्य को जन लेता हैं. उसी परमात्मा देव में यह सारा जगत समाया हुआ हैं. वह देव अत्यंत सहन शक्ति वाला हैं. वह एक ही हैं, अकेला ही वर्तमान हैं, वह एक ही है
कुरान पक्ष...
मुसलमान एक ही परमात्मा को मानते हैं, जिसे वोअल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में परमात्मा को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। मुसलमानों के अनुसार परमात्मा अद्वितीय हैः उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में परमात्मा की एक विलक्षण अवधारणा पर ज़ोर दिया गया है। साथ में यह भी माना जाता कि उसकी पूरी कल्पना मनुष्य के बस में नहीं है।
कुरान में...
कहो: है परमात्मा एक और अनुपम।
है परमात्मा सनातन, हमेशा से हमेशा तक जीने वाला।
उसकी न कोई औलाद है न वह खुद किसी की औलाद है।
और उस जैसा कोई और नहीं॥”
(कुरान, सूरत ११२, आयते १ - ४)
सूरए ज़ुमर की 66वीं आयत सभी को परमात्मा की उपासना का निमंत्रण देते हुए कहती है केवल परमात्मा की उपासना करो और कृतज्ञों में से हो जाओ। अर्थात सभी का पूज्य केवल और केवल अनन्य परमात्मा होना चाहिए।
क़ुरआने मजीद सूरए ज़ोमर की आयत क्रमांक 64 से 66 में अनेकेश्वरवाद और एकेश्वरवाद के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए कहता है। कह दीजिए कि हे अज्ञानियो! क्या तुम मुझसे यह कहते हो कि मैं परमात्मा के अतिरिक्त किसी और की उपासना करूँ? For more click this👇🏼👇🏼
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दोऊ दौड करत हैं, हिन्दू या मुसलमान।
ए जो उरझे बीच में, इनका सुंन मकान।।
प्रणाम जी
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