Sunday, June 26, 2016

मन के दूारा परमात्मा को या गुरू तत्व को नही पाया जा लकता

कल का शेष

सुप्रभात जी..

मूल विषय था....या गुरूमुख कोन है या गुरू का दास का कया भाव है ... इसका भाव को समझने के लिय उप विषय आया  *मन के दूारा परमात्मा को या गुरू तत्व को नही पाया जा लकता*
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तो मिले कैसे ???..??
पहले उपविषय को पकडें..

*अब ध्यान दें...*

विषय समझने से पहले एक बार मोटा मोटा ये समझलों कि अध्यात्मशास्त्र के अनुसार मनुष्य किन घटकों से बना है ?

जीवित मनुष्य आगे दिए अनुसार विविध देहों से बना है ।

१. स्थूल शरीर अथवा स्थूलदेह

२. चेतना (ऊर्जा) अथवा प्राणदेह

३. मन अथवा मनोदेह

४. बुद्धि अथवा कारणदेह

५. सूक्ष्म अहं अथवा महाकारण देह

६. जीव अथवा हम सभी में विद्यमान ईश्‍वरीय तत्त्व

अब इनमे जान्ने वाली केवल एक ही बात है वो है
*सूक्ष्म अहं अथवा महाकारण देह*
यह मनुष्य की अज्ञानता का प्रथम उत्पन्न भाग । अज्ञानता कया है ? मैं ईश्‍वर से अलग हूं, यह भावना ही अज्ञानता है ..

*अब बहोत ध्यान से विषय को पकडना..*

जैैसे ही जीव को सूक्ष्म अहं हुआ तो वह परमात्मा से हटकर प्रकृती से जुड गया *मतलब जीव का जैसे ही प्रकृती से जुडाव हुआ तो कारण, मन, प्राण और इसकी स्थूल थेह अस्तितव में आ गये*

वैसे इनका कोई स्वतंत्र अस्तितव नही है.. ये सब जीव के शरीर मात्र हैं .. अब इतना समझने के बाद हमारी समझ मे आ जायगा की *मन के दूारा परमात्मा को या गुरू तत्व को नही पाया जा लकता*
एक उदाहरण से समझें .. अगर में ये कहूं कि मैं तो संसार में रहूं लेकिन मेरा हाथ परमात्मा मे लग जाए, या मैं अपने सास बहू के सिरियल देखती रहूं लेकिन मेरा पांव परमात्मा मे लग जाय, बताइये कया यह संभव है .. कयोंकी आपके हाथ पांव आपसे आलग होकर कार्य कैसे करेंगे बताओ कर सकते हैं कया ठीक वैसे ही हम कर रहे हैं हम खुद प्रकृती के साथ आपनी स्थिती बनाऐ हुये हैं और कह रहे है हमारा मन परमात्मा मे लग जाय ,अरे मन आपका ही है ये वहीं रहेगा जाहां आप हो जैसे आपके हाथ पांव वही है जहा आप हो वैसे ही मन भी है , ये मन परमात्मा में कैसे लगेगा जब इसका कोइ खुदका अस्तितव ही नही है..जहां आप वहा मन, तो *खुद परमात्मा में लग जाओ तो मन कया संसार में रहेगा..नही ये खुद वहीं रहेगा जहां आप हो आप परमात्मा में तो मन चित बुद्धि आदि सब आपके साथ याने परमात्मा मे ओर आप प्रकृती अर्थात माया में तो सब माया में अब सोचो कितनी मर्खता कर रहे हो खुद माया में रह कर मनको परमात्मा मे लगाने में अनेक जीवन व्यर्थ गवां दिय ..और कह रहे हो की मन परमात्मा में नही लगता ...इसलिय 80 हजार साल समाधी के बाद भी मन वही आया जाहां विशवामित्र की सवंय की स्थिती थी, इसलिय इतनी तपस्या के बाद भी मन नही लगा परमात्मा में .... अरे 80 हजार नही करोडों वर्ष लगादो फिर भी कया होगा ..इसमें मनकी कया गलती इसलिय मन को नही लगाना है खुदको लगाना है मीरा कबीर तुल्सी आदी ने मन नही लगाया वो खुद लग गये इसलिय पा लिया बोलो मन लगाते रहते तो परमात्मा मिल्ते कया .. *बस यही बात गांठ बांधलो ओर लग जाओ परमात्मा में ..मन एक मिनट में लग जायेगा*

बस यहीं से समझलो कि गुरूमुख कोन है , जो गूरूतत्व में मन ना लगा के खुद लगा है..या गुरू का दास का कया भाव है ..तो आपकी खुदकी गुरू तत्व में स्थिती होने को ही गुरू या परमात्मा का दास कहा है कयोंकी दास का अर्थ है आप जिसके लिय निरंतर तत्पर हों... बहोत महत्वपूर्ण विषय है इसके बिना कल्याण कठिन है.. ... ये विषय अबतक छिपा था कयोंकि जो परमात्मां में स्थित हो चुके थे वो बताने वाले अब रहे नही इसलिय सार बताने वाले चले गये केवल उनके दूारा बताऐ शब्द हैं जिनमें सार छिपा है ...इसलिय विषय छिपा रहा.. बार बार मंथन करो इस विषय का, ओर ग्रहण करो पढकर मत छोडदेना...
अब उपनिषदों का यह कथन हमारी समझ में आजायेगा और वेद भी कहता यही कहता है..

उपनिषदों का कथन है कि वह ब्रह्म मन तथा वाणी से परे है, अतः उसे इन्द्रियों, मन, वाणी तथा बुद्धि के साधनों से प्राप्त नहीं किया जा सकता ।*
( कठो. २/६/)

*(कयी बार विषय शब्दो मे नही आ पाता उसके लिय संगत की आव्यश्कता होती है...इसलिय कुछ त्रुटि हो तो क्षमा करें)*
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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