Friday, June 17, 2016

गुरूतत्व

सुप्रभात जी

एक महात्मा जी अपने शिष्यों के साथ कहीं जा रहे थे | रास्ते में एक सांप घायल अवस्था में पड़ा हुआ था और उस पर तमाम चींटियाँ लग रही थी | सांप हिल सकता नहीं था बैचैन होकर अपना फन उठाता था फिर गिर जाता था |

महात्मा जी उसे देखकर रो पड़े | शिष्यों को समझ में नहीं आया | उन्होंने कहा कि महाराज जी आप क्यों रो रहे हैं ? महात्मा जी बोले कि कर्मों का ऐसा विधान है जिसे जीव अपनी अज्ञानता में नहीं समझ पाता है | यह सांप कभी गुरु बना था | महात्माओं की नक़ल की और इतने शिष्य बनाये | इसने शिष्यों से तरह तरह की तन मन धन की सेवा ली लेकिन उनकी आत्माओं का कल्याण नहीं कर सका | क्योंकि इसने अपनी आत्मा का भी कल्याण नहीं किया था | अब कर्मी के जाल में फंसकर वह गुरु सांप बना और उसके सारे शिष्य चींटियाँ बन गये हैं | अब ये चींटिया इस घायल सांप को काट रही हैं और कह रही हैं कि मेरी सेवाओं का बदला दो | तुमने मुझे क्यों धोखे में रक्खा , मेरा आत्म कल्याण नहीं किया और ये बेचारा सांप ऐसी अधोगति में पड़ा हुआ पीड़ा सह रहा है और कुछ कर नहीं पा रहा है |

महात्मा जी ने आगे कहा कि गुरुतत्व को समझ पाना कोई हंसी खेल नहीं है , सबसे गहन काम है | आजकल चेले बनाकर उनकी सेवाओं को लेकर  भी उनका आत्म कल्याण  नही होता कयोंकी आत्म कल्याण के अलग मायने हैं ..ऐसे गुरूओं से  वो जीव अपना बदला मांगते है | गृहस्थों के खून पसीने की कमाई की रोटी खाकर जो साधू उनका कल्याण नहीं करता तो ये रोटियां उसके आँतों को फाड़ देती हैं और दोनो को अधोगती में जाना पडता है..इसलिय गूरूतत्व का बोध होना आत्मकल्याण के लिय परमआवश्क है..हम गूरू उस व्यक्तित्व को समझते हैं जो गूरू हो ग्यानी हो प्रमात्मा का प्रेमी हो ...
*अब ध्यान दें गूरूतत्व वो है जो गुरू ना हो, ग्यानी ना हो, और प्रेमी ना हो*
 यही बारीक भेद न समझ पाने के कारण हम अन्नत जन्मों से गूरू बनाने के बाद भी भटक रहे हैं..अन्नत जन्मों में अन्नत बार गुरू बनाऐ और हर बार वही कहा जो इस जन्म में कह रहे हो की हमारा गुरू श्रेष्ठ है.. इसी भ्रम में ये जन्म भी गया... व्यर्थ जायगा *अगर गुरूतत्व नही जान पाये तो..*
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

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