*( भागवत पुराण महात्म्य - प्रथम अध्याय )*
सुप्रभात जी
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शांडिल्य जी ने कहा - प्रिय परीक्षित और बज्रनाभ ! मैं तुम लोगों से ब्रज भूमि का रहस्य बतलाता हूँ। तुम दतचित हो कर सुनो। 'ब्रज' शब्द का अर्थ है - *व्याप्ति*। इस वृद्धवचन के अनुसार व्यापक होने के कारण इस भूमि का नाम 'ब्रज' पड़ा है। ।। १९ ।।
*सत्व, रज, तम -- इन तीन गुणों से अतीत जो परब्रहम है, वही व्यापक है।* इसलिए उसे 'ब्रज' कहते हैं। वह सदानन्दस्वरूप, परम ज्योतिर्मय और अविनाशी है। जीवंमुक्त पुरुष उसी में स्थित रहते हैं। ।। २० ।।
*प्रकृति के साथ स्थित होने पर* होने वाली लीला में ही रजोगुण, सत्वगुण और तमोगुण के द्वारा सृष्टि, स्तिथि और प्रलय की प्रतीति होती है। इस प्रकार यह निश्चय होता है कि परमात्मा की लीला दो प्रकार की होती है -- *एक वास्त्विकी और और दूसरी व्याव्हारिकी।* || २५ ||
*वास्तवी* लीला स्वसंवेद्य है -- उसे परमात्मा और उनकी रसिक (आत्माऐं )ही जान्ती हैं। जीवों के सामने जो लीला होती है वह *व्याव्हारिकी* लीला है। *वास्तवी* लीला के बिना *व्याव्हारिकी* लीला नहीं हो सकती; परन्तु व्याव्हारिकी लीला का वास्तविक लीला के राज्य में कभी प्रवेश नहीं हो सकता। || २६ |
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प्रणाम जी
सुप्रभात जी
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शांडिल्य जी ने कहा - प्रिय परीक्षित और बज्रनाभ ! मैं तुम लोगों से ब्रज भूमि का रहस्य बतलाता हूँ। तुम दतचित हो कर सुनो। 'ब्रज' शब्द का अर्थ है - *व्याप्ति*। इस वृद्धवचन के अनुसार व्यापक होने के कारण इस भूमि का नाम 'ब्रज' पड़ा है। ।। १९ ।।
*सत्व, रज, तम -- इन तीन गुणों से अतीत जो परब्रहम है, वही व्यापक है।* इसलिए उसे 'ब्रज' कहते हैं। वह सदानन्दस्वरूप, परम ज्योतिर्मय और अविनाशी है। जीवंमुक्त पुरुष उसी में स्थित रहते हैं। ।। २० ।।
*प्रकृति के साथ स्थित होने पर* होने वाली लीला में ही रजोगुण, सत्वगुण और तमोगुण के द्वारा सृष्टि, स्तिथि और प्रलय की प्रतीति होती है। इस प्रकार यह निश्चय होता है कि परमात्मा की लीला दो प्रकार की होती है -- *एक वास्त्विकी और और दूसरी व्याव्हारिकी।* || २५ ||
*वास्तवी* लीला स्वसंवेद्य है -- उसे परमात्मा और उनकी रसिक (आत्माऐं )ही जान्ती हैं। जीवों के सामने जो लीला होती है वह *व्याव्हारिकी* लीला है। *वास्तवी* लीला के बिना *व्याव्हारिकी* लीला नहीं हो सकती; परन्तु व्याव्हारिकी लीला का वास्तविक लीला के राज्य में कभी प्रवेश नहीं हो सकता। || २६ |
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