*ध्यान दें महत्वपूर्ण विषय है इसके बिना कल्याण नही है*
विषय है - कया हम निगुरे हैं..???
सुप्रभात जी
www.facebook.com/kevalshudhsatye
*जो मिल्या निगुरा मिल्या गुरूमुख मिल्या ना कोय,*
*गुरूतत्व जो जानीया तो गुरूमुख हुआ जन सोय ||*
(परमात्मा दूारा दि गयी चौपाई व व्याख्या)
इसका अर्थ है हम सब निगुरे है और दूसरो को निगुरा कहते कहते उम्र गवा देते हैं.. कैसे ??
पहले जाने गूरू कौन ..शरीर गुरू ? नही ..कयोंकी जैसा गूरू का वैसा हमारा नश्वर ..
मन चित अहंकार गूरू ? नही ..कयोंकी जैसा गूरू का वैसा हमारा नश्वर ..
प्राण गूरू ? नही मृत्यु के बाद प्रकृती में लय होता है ये कार्य करने मे सहायक है सवंय कर्ता नही हो सकता
जीव गूरू ? नही ..कयोंकी जैसा गूरू का वैसा हमारा निर्विकार ..
आत्मा गुरू ? नही कयोंकी प्रकृती में इसको खुदका स्वरूप ही याद नही रहता फिर दूसरो का कया कल्याण करेगी
तो फिर गुरू कोन ??????
*अब ध्यान दें...*
परमात्मा हमारे कल्याण के लिय जिस शब्दसार रूपमें अर्थात शब्द अर्थात याहां के शब्दो में सार अर्थात अखंड का सार लेके याने सत्य का भाव लेके ग्यान रूप मे प्रकट होते है *इसे ही गुरू तत्व कहा जाता है* ये ही गुरू है सतगुरू...लेकिन ध्यान रहे परमात्मा ये किसी शरीर के माध्यम से ही करते है इसलिय उस शरीर को भी बारम्बार प्रणाम लेकीन ये भी सत्य है की शरीर गुरू नही हो सकता ..अब गलती यहा से शूरू होती है कि हम उस शरीर से ही मोह कर बैठते है लेकिन ये ध्यान नही देते कि जिस महात्मा के शरीर में तुम मोह कर रहे हो वो महात्मा या संत बना ही इसलिय है कयोंकी उसने इस शरीर को नश्वर समझ कर इसे त्याग चुका है.. इस हाड मास से बने शरीर को वो विष्ठा समझता है इसलिय वो संत है और हम उसकी विष्ठा मे ही मुह मार रहे है और विष्ठा खाने से आप अवश्य ही सवास्थय नही रहेंगे रोगी हो जाते हैं इसलिय रोगी हो गये हो रोग कया? काम, करोध, लोभ, मोह, ओर अहंकार या राग ओर अनुराग उस शरीर में ही कर बैठते है ...
ध्यान दें कयोंकी झूठ मे गुरू की मान्यता की इसलिय सत्य गुरू तत्व नही पकड़ पाये ओर झूठ का अर्थ है जो है नही या जो मिटता है ..तो जो है नही उसमे मान्यता की तो इसका अर्थ है आपने नही को गुरू माना तो आपका गुरू है ही नही तो हो गये ना हम निगुरे इस कारण हम सदा से निगुरे है अरे गुरू धारण किया होता तो कल्याण हो गया होता कबका ...हम हर जन्म मे नही को गुरू मान्ते आ रहे है इसलिय गुरू बनाकर भी कल्याण नही हो रहा जबकी सारे शाष्त्र कहते है गुरू से कल्याण होता है तो कया शाष्त्र झूठे है .. नही हमने झूठ पकड रखी है..एक उदाहरण से समझें..
कुछ समय पहले मेरी एक मित्र से बात हूई उसके गुरू ने कुछ समय पहले ही शरीर छोडा है तो वो कहने लगे की अब हम अनाथ हो गये है हमारे गुरू हमें छोडकर चले गये ...
इसका अर्थ है कि गुरू हमने *नही* अर्थात शरीर को माना तो ऐसा नही है की हम उस शरीर के जाने के बाद बिना गुरू के हुये है बल्कि सत्य तो ये है कि हम शुरू से ही बिना गुरू के थे अर्थात निगुरे थे बस बात इतनी है की जबतक गुरू का शरीर था तो हम गफलत में रहे की हम गुरूमुख हैं और उस शरीर के जाते ही अहसास हो गया की निगुरे हैं...
इसलिय
*जो मिल्या निगुरा मिल्या गुरूमुख मिल्या ना कोय,*
*गुरूतत्व जो जानीया तो गुरूमुख हुआ जन सोय ||*
अब सवाल है की सब गरन्थो मे लिखा है की गुरू की शरणागती के बिना कल्याण नही है इसका शुद्ध भाव कया है ....या गुरूमुख कोन है या गुरू का दास का कया भाव है ... इसकि चर्चा कल करेंगे..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
विषय है - कया हम निगुरे हैं..???
सुप्रभात जी
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*जो मिल्या निगुरा मिल्या गुरूमुख मिल्या ना कोय,*
*गुरूतत्व जो जानीया तो गुरूमुख हुआ जन सोय ||*
(परमात्मा दूारा दि गयी चौपाई व व्याख्या)
इसका अर्थ है हम सब निगुरे है और दूसरो को निगुरा कहते कहते उम्र गवा देते हैं.. कैसे ??
पहले जाने गूरू कौन ..शरीर गुरू ? नही ..कयोंकी जैसा गूरू का वैसा हमारा नश्वर ..
मन चित अहंकार गूरू ? नही ..कयोंकी जैसा गूरू का वैसा हमारा नश्वर ..
प्राण गूरू ? नही मृत्यु के बाद प्रकृती में लय होता है ये कार्य करने मे सहायक है सवंय कर्ता नही हो सकता
जीव गूरू ? नही ..कयोंकी जैसा गूरू का वैसा हमारा निर्विकार ..
आत्मा गुरू ? नही कयोंकी प्रकृती में इसको खुदका स्वरूप ही याद नही रहता फिर दूसरो का कया कल्याण करेगी
तो फिर गुरू कोन ??????
*अब ध्यान दें...*
परमात्मा हमारे कल्याण के लिय जिस शब्दसार रूपमें अर्थात शब्द अर्थात याहां के शब्दो में सार अर्थात अखंड का सार लेके याने सत्य का भाव लेके ग्यान रूप मे प्रकट होते है *इसे ही गुरू तत्व कहा जाता है* ये ही गुरू है सतगुरू...लेकिन ध्यान रहे परमात्मा ये किसी शरीर के माध्यम से ही करते है इसलिय उस शरीर को भी बारम्बार प्रणाम लेकीन ये भी सत्य है की शरीर गुरू नही हो सकता ..अब गलती यहा से शूरू होती है कि हम उस शरीर से ही मोह कर बैठते है लेकिन ये ध्यान नही देते कि जिस महात्मा के शरीर में तुम मोह कर रहे हो वो महात्मा या संत बना ही इसलिय है कयोंकी उसने इस शरीर को नश्वर समझ कर इसे त्याग चुका है.. इस हाड मास से बने शरीर को वो विष्ठा समझता है इसलिय वो संत है और हम उसकी विष्ठा मे ही मुह मार रहे है और विष्ठा खाने से आप अवश्य ही सवास्थय नही रहेंगे रोगी हो जाते हैं इसलिय रोगी हो गये हो रोग कया? काम, करोध, लोभ, मोह, ओर अहंकार या राग ओर अनुराग उस शरीर में ही कर बैठते है ...
ध्यान दें कयोंकी झूठ मे गुरू की मान्यता की इसलिय सत्य गुरू तत्व नही पकड़ पाये ओर झूठ का अर्थ है जो है नही या जो मिटता है ..तो जो है नही उसमे मान्यता की तो इसका अर्थ है आपने नही को गुरू माना तो आपका गुरू है ही नही तो हो गये ना हम निगुरे इस कारण हम सदा से निगुरे है अरे गुरू धारण किया होता तो कल्याण हो गया होता कबका ...हम हर जन्म मे नही को गुरू मान्ते आ रहे है इसलिय गुरू बनाकर भी कल्याण नही हो रहा जबकी सारे शाष्त्र कहते है गुरू से कल्याण होता है तो कया शाष्त्र झूठे है .. नही हमने झूठ पकड रखी है..एक उदाहरण से समझें..
कुछ समय पहले मेरी एक मित्र से बात हूई उसके गुरू ने कुछ समय पहले ही शरीर छोडा है तो वो कहने लगे की अब हम अनाथ हो गये है हमारे गुरू हमें छोडकर चले गये ...
इसका अर्थ है कि गुरू हमने *नही* अर्थात शरीर को माना तो ऐसा नही है की हम उस शरीर के जाने के बाद बिना गुरू के हुये है बल्कि सत्य तो ये है कि हम शुरू से ही बिना गुरू के थे अर्थात निगुरे थे बस बात इतनी है की जबतक गुरू का शरीर था तो हम गफलत में रहे की हम गुरूमुख हैं और उस शरीर के जाते ही अहसास हो गया की निगुरे हैं...
इसलिय
*जो मिल्या निगुरा मिल्या गुरूमुख मिल्या ना कोय,*
*गुरूतत्व जो जानीया तो गुरूमुख हुआ जन सोय ||*
अब सवाल है की सब गरन्थो मे लिखा है की गुरू की शरणागती के बिना कल्याण नही है इसका शुद्ध भाव कया है ....या गुरूमुख कोन है या गुरू का दास का कया भाव है ... इसकि चर्चा कल करेंगे..
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प्रणाम जी
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