(कल के विषय से आगे..)
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अब सवाल है की सब ग्रन्थो मे लिखा है की गुरू की शरणागती के बिना कल्याण नही है इसका शुद्ध भाव कया है ....या गुरूमुख कोन है या गुरू का दास का कया भाव है ... इसका भाव समझने के लिय पहले एक महत्वपुर्ण विषय को समझना पडेगा वो है कि *मन के दूारा परमात्मा को या गुरू तत्व को नही पाया जा लकता* अब आप कहोंगे कि ये तो उल्टि बात है हमने तो आज तक यही सुना हैकी मन लगाओ मन लगाये बिना परमात्मा नही मिलेंगे और तुम कहते हो कि मन लगाने से परमात्मा नही मिलेंगे ...तो में बिलकुल सही कह रहा हूं मन लगाने से न परमात्मा मिलेंगे न गुरू कि या परमात्मा कि श्रणागती संभव है ...इसको थोडा और विवादित बना दूं यह कह कर कि आज तक परमात्मा में या गुरू तत्व में किसी का मन लगा ही नही है वो चाहे मीरा हो तुलसी हो सूर हो कबीर हो या कोई भी संत हो ..तब उनको परमात्मा कैसे मिले ?? अब तो आपको मुझपर पूर्णतः संदेह हो गया होगा और आप इस विषय का शपष्टिकरण चाह रहें होगें.. पहले थोडा सा संवय सोचो कि आज के इस समय तक आपने परमात्मा में मन लगाने का प्रयास करने के बाद भी मन नही लगा उम्र भी 30-40 या 50-60 हो गयी होगी इस से कम ज्यादा भी होगी तो सोचो अब तक मन निरंतर परमात्मा में नही लगा आगे कया लगेगा अब ये बात गांठ बांधलो मन नही लगेगा नही लगेगा नही लगेगा मन लगाने का प्रयास हम आज से नही कर रहे अन्नत जन्मों से कर रहे हैं फिर भी नही लगा केवल हमारा नही किसी का नही लगा जिसने प्रयास किया मन ने उसे घुमा दिया 80 हजार साल तक मन को समाधी मे लोप किय हुये संत भी समाधी से उठते ही मन दूारा ठगे गये ऐसे प्रमाण साष्त्रो में हैं.. मन लगाने से परमात्मा या गुरू तत्व नही मिल सकता ..
*उपनिषदों का कथन है कि वह ब्रह्म मन तथा वाणी से परे है, अतः उसे इन्द्रियों, मन, वाणी तथा बुद्धि के साधनों से प्राप्त नहीं किया जा सकता ।*
( कठो. २/६/)
तो मिले कैसे ???..??
अब ध्यान दें....
(इसपर कल चर्चा होगी)
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प्रणाम जी
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