*जब अपने अंदर के चेतन परमात्मा मे स्थित हो जाओगे तब कर्ता और भोक्ता उत्पन्न करने वाली परिवर्नशील प्रकृती से तुम्हारा सम्बंध विछेद हो जायेगा तब तुम जिसे कर्म बन्धन समझते हो उस धारणा से मुक्त होकर परमात्मा को पराप्त हो जाओगे* ..यही आनंद प्राप्ति हमारा परम लक्षय है...
*अष्टावक्र कहते हैं - तुम्हारा किसी से भी संयोग नहीं है, तुम शुद्ध हो, तुम क्या त्यागना चाहते हो, इस (अवास्तविक) सम्मिलन को समाप्त कर के ब्रह्म से योग (एकरूपता) को प्राप्त करो|*
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प्रणाम जी
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