*"प्रेम"*
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मन की सिर्फ़ आठ अवस्थायें होती हैं - काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ज्ञान, वैराग । जाहिर है इनमें प्रेम का भाव या अवस्था है ही नहीं । सांसारिक लोग जिसे प्रेम कहते या समझते हैं । वह दरअसल स्वार्थ पूर्ण सम्बन्ध या चाहना या या सम्मोहक आकर्षण का मिला जुला भाव है । जो उपरोक्त में ‘काम’ श्रेणी में आता है । और कारणवश उत्पन्न होता है । पर क्योंकि इसमें लोभ, मोह, मद आदि भावों का भी स्थिति अनुसार अंश होता है । इसलिये इसे ‘प्रेम’ कहने लगते हैं । जो भारी अज्ञानता है । यह मन का भाव नहीं हैं, यह जीव के लिय भी नवीन विषय व इसके लिय नौवां भाव है तथा आत्मा का परमभाव ‘प्रेम’ है कयोंकी आत्मा प्रेम का अंश है। प्रेम एक अविरल धारा है । यह गुणातीत विषय है जबकी मनकी सभी अवस्थाऐं गूणों के आधीन हैं...इसलिय गूणातीत परमात्मा को गूणातीत भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है...
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
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मन की सिर्फ़ आठ अवस्थायें होती हैं - काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, ज्ञान, वैराग । जाहिर है इनमें प्रेम का भाव या अवस्था है ही नहीं । सांसारिक लोग जिसे प्रेम कहते या समझते हैं । वह दरअसल स्वार्थ पूर्ण सम्बन्ध या चाहना या या सम्मोहक आकर्षण का मिला जुला भाव है । जो उपरोक्त में ‘काम’ श्रेणी में आता है । और कारणवश उत्पन्न होता है । पर क्योंकि इसमें लोभ, मोह, मद आदि भावों का भी स्थिति अनुसार अंश होता है । इसलिये इसे ‘प्रेम’ कहने लगते हैं । जो भारी अज्ञानता है । यह मन का भाव नहीं हैं, यह जीव के लिय भी नवीन विषय व इसके लिय नौवां भाव है तथा आत्मा का परमभाव ‘प्रेम’ है कयोंकी आत्मा प्रेम का अंश है। प्रेम एक अविरल धारा है । यह गुणातीत विषय है जबकी मनकी सभी अवस्थाऐं गूणों के आधीन हैं...इसलिय गूणातीत परमात्मा को गूणातीत भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है...
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