सुप्रभात जी
www.facebook.com/kevalshudhsatye
मनुष्य जन्म अत्यन्त ही दुर्लभ है, मनुष्य जीवन का केवल एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होता है, वह परमात्मा के प्राप्त करना है। परमात्मा को प्राप्त करके मनुष्य सुख और दुखों से मुक्त होकर कभी न समाप्त होने वाले आनन्द को प्राप्त हो जाता है।
यहाँ सभी सांसारिक संबंध स्वार्थ से प्रेरित होते हैं। हमारे पास किसी प्रकार की शक्ति है, धन-सम्पदा है, शारीरिक बल है, किसी प्रकार का पद है, बुद्धि की योग्यता है तो उसी को सभी चाहते है न कि हमको चाहते है। हम भी संसार से किसी न किसी प्रकार की विद्या, धन, योग्यता, कला आदि ही चाहते हैं, संसार को नहीं चाहते हैं।
इन बातों से सिद्ध होता है संसार में हमारा कोई नहीं है, सभी किसी न किसी स्वार्थ सिद्धि के लिये ही हम से जुड़े हुए है। सभी एक दूसरे से अपना ही मतलब सिद्ध करना चाहते हैं। ब्रह्म ग्यान के अभाव में हम, संसार रूपी माया से अपना मतलब सिद्ध करना चाहते हैं और माया रूपी संसार हम से अपना मतलब सिद्ध करना चाहता है। हम माया को ठगने में लगे रहते है और माया हमारे को ठगने में लगी रहती है इस प्रकार दोनों ठग एक दूसरे को ठगते रहते हैं ..
इसलिय तारतम रूपी ब्रह्मग्यान को ग्रहण करके हमे अती शीध्र अपनी स्थिती प्रकृती (माया)सेे हटा कर परमात्मा में बमानी होगी अर्थात परमात्मा में स्थित होना होगा...यही एक मात्र उपाय है..
निस दिन ग्रहियो प्रेम सो युगलस्वरूप के चरणन
निर्मल होना याहूंसो और धाम वर्णन इनविध नरकसो छुटिये और उपाय कछुनाही **भजन** बिना सब नरक है पच पच मरियो माही...
*भजन* भज धातु से बना है जिसके अर्थ हैं सेवा करना या लगाना (अर्थात संवय को प्रकृती से हटा कर परमात्मा में लगाना या स्थित करना भजन है)
भजन का अर्थ केवल गायन नही है..
पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥
भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और साखी अथवा कथा सुन्ने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना या उसको धारण किये बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है.
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥
(गीताः ७/१३)
प्रकृति के मे स्थित होने के कारण प्रकृति के तीनों गुणों से उत्पन्न भावों द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं।
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
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मनुष्य जन्म अत्यन्त ही दुर्लभ है, मनुष्य जीवन का केवल एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होता है, वह परमात्मा के प्राप्त करना है। परमात्मा को प्राप्त करके मनुष्य सुख और दुखों से मुक्त होकर कभी न समाप्त होने वाले आनन्द को प्राप्त हो जाता है।
यहाँ सभी सांसारिक संबंध स्वार्थ से प्रेरित होते हैं। हमारे पास किसी प्रकार की शक्ति है, धन-सम्पदा है, शारीरिक बल है, किसी प्रकार का पद है, बुद्धि की योग्यता है तो उसी को सभी चाहते है न कि हमको चाहते है। हम भी संसार से किसी न किसी प्रकार की विद्या, धन, योग्यता, कला आदि ही चाहते हैं, संसार को नहीं चाहते हैं।
इन बातों से सिद्ध होता है संसार में हमारा कोई नहीं है, सभी किसी न किसी स्वार्थ सिद्धि के लिये ही हम से जुड़े हुए है। सभी एक दूसरे से अपना ही मतलब सिद्ध करना चाहते हैं। ब्रह्म ग्यान के अभाव में हम, संसार रूपी माया से अपना मतलब सिद्ध करना चाहते हैं और माया रूपी संसार हम से अपना मतलब सिद्ध करना चाहता है। हम माया को ठगने में लगे रहते है और माया हमारे को ठगने में लगी रहती है इस प्रकार दोनों ठग एक दूसरे को ठगते रहते हैं ..
इसलिय तारतम रूपी ब्रह्मग्यान को ग्रहण करके हमे अती शीध्र अपनी स्थिती प्रकृती (माया)सेे हटा कर परमात्मा में बमानी होगी अर्थात परमात्मा में स्थित होना होगा...यही एक मात्र उपाय है..
निस दिन ग्रहियो प्रेम सो युगलस्वरूप के चरणन
निर्मल होना याहूंसो और धाम वर्णन इनविध नरकसो छुटिये और उपाय कछुनाही **भजन** बिना सब नरक है पच पच मरियो माही...
*भजन* भज धातु से बना है जिसके अर्थ हैं सेवा करना या लगाना (अर्थात संवय को प्रकृती से हटा कर परमात्मा में लगाना या स्थित करना भजन है)
भजन का अर्थ केवल गायन नही है..
पद गाए मन हरषियां, साषी कह्यां अनंद ।
सो तत नांव न जाणियां, गल में पड़िया फंद ॥
भावार्थ - मन हर्ष में डूब जाता है भजन गाते हुए, और साखी अथवा कथा सुन्ने में भी आनन्द आता है । लेकिन सारतत्व को नहीं समझा, तो गले में फन्दा ही पड़नेवाला है | अर्थात बृह्म को जाने बिना या उसको धारण किये बिना कुछ भी करलो सब व्यर्थ है.
त्रिभिर्गुणमयैर्भावैरेभिः सर्वमिदं जगत् ।
मोहितं नाभिजानाति मामेभ्यः परमव्ययम् ॥
(गीताः ७/१३)
प्रकृति के मे स्थित होने के कारण प्रकृति के तीनों गुणों से उत्पन्न भावों द्वारा संसार के सभी जीव मोहग्रस्त रहते हैं, इस कारण प्रकृति के गुणों से अतीत मुझ परम-अविनाशी को नहीं जान पाते हैं।
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