Wednesday, April 13, 2016


सुप्रभात जी
भज गोविन्दम’ स्तोत्र 1,2,3,4

हे भटके हुए जीव, सदैव परमात्मा का ध्यान कर क्योंकि तेरी अंतिम सांस के वक्त तेरा यह सांसारिक ज्ञान तेरे काम नहीं आएगा। सब नष्ट हो जाएगा।

हम हमेशा मोह माया के बंधनों में फसें रहते हैं और इसी कारण हमें सच्चे आनंद की प्राप्ति नहीं होती। हम हमेशा ज्यादा से ज्यादा पाने की कोशिश करते रहते हैं। सुखी जीवन बिताने के लिए हमें संतुष्ट रहना सीखना होगा। हमें जो भी मिलता है उसे हमें खुशी खुशी स्वीकार करना चाहिए क्योंकि जो मिल रहा है वो तुम्हारे कर्मों के अनुसार है..हम जैसे कर्म करते हैं, हमें वैसे ही फल की प्राप्ति होती है।

हम स्त्री की सुन्दरता से मोहित होकर उसे पाने की निरंतर कोशिश करते हैं। परन्तु हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सुन्दर शरीर सिर्फ हाड़ मांस का टुकड़ा है।

हमारा जीवन क्षण-भंगुर है। यह उस पानी की बूँद की तरह है जो कमल की पंखुड़ियों से गिर कर समुद्र के विशाल जल स्त्रोत में अपना अस्तित्व खो देती है। हमारे चारों ओर प्राणी तरह तरह की कुंठाओं एवं कष्ट से पीड़ित हैं। ऐसे जीवन में कैसी सुन्दरता...

हे भटके हुए जीव, सदैव उससर्वसुन्दर परमात्मा का ध्यान कर...कयोंकि उससे अधिक आनंद ओर उससे अधिक सौन्द्रय ओर किसी भी वस्तु में नही है...ये चाहे आज जान ले या करोड़ो जन्म और लगा दे पर सत्य यही है ..
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment