सुप्रभात जी
इस संसार के सिद्धान्तानुसार सभी जीव अपने-अपने संस्कारों के अनुसार ही कार्य करते हैं तथा सबके संस्कार भी अलग-अलग ही होते हैं। अतः सबके द्वारा अलग-अलग प्रकार की लीला होनी स्वाभाविक है। जीव पर आत्मा विराजमान होकर इस खेल को देख रही है, इसलिये जीवों के संस्कारवश अलग-अलग प्रकार के नाटक यहां दिखायी पड़ रहे हैं, किन्तु यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि परमात्मा जिस आत्मा को जिस प्रकार की लीला दिखाना चाहते हैं उसके दिल में वैसा ही भाव भरते हैं और उसकी नजर दिल रूपी परदे पर वैसा ही दृश्य देखती है। उसकी सुरता(ध्यान) भी वैसे ही जीव पर विराजमान होती है, जो उस प्रकार का अभिनय कर सके। परमात्मा के हुक्म से ही इस प्रकार की विचित्र लीला चल रही है।
प्रणाम जी
इस संसार के सिद्धान्तानुसार सभी जीव अपने-अपने संस्कारों के अनुसार ही कार्य करते हैं तथा सबके संस्कार भी अलग-अलग ही होते हैं। अतः सबके द्वारा अलग-अलग प्रकार की लीला होनी स्वाभाविक है। जीव पर आत्मा विराजमान होकर इस खेल को देख रही है, इसलिये जीवों के संस्कारवश अलग-अलग प्रकार के नाटक यहां दिखायी पड़ रहे हैं, किन्तु यह ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि परमात्मा जिस आत्मा को जिस प्रकार की लीला दिखाना चाहते हैं उसके दिल में वैसा ही भाव भरते हैं और उसकी नजर दिल रूपी परदे पर वैसा ही दृश्य देखती है। उसकी सुरता(ध्यान) भी वैसे ही जीव पर विराजमान होती है, जो उस प्रकार का अभिनय कर सके। परमात्मा के हुक्म से ही इस प्रकार की विचित्र लीला चल रही है।
प्रणाम जी
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