सुप्रभात जी
जैसे आकाश में नीलता,सीप में रूपा और निद्रादोष से स्वप्न दिखते हैं वैसे ही यह जगत् भ्रान्ति से दिखाइ देता है । और जब अपने सवंय के स्वरूप में जागे तब जगत्भ्रम मिट जाता है । इससे कारणकार्य भ्रम को त्यागकर तुम अपने स्वरूप में स्थित हो । दुर्बोध से संकल्प रचना हुई है उसको त्याग करो और आदि, मध्य और अन्त से रहित जिसकी सत्ता है उसी आनंदस्वरूप में स्थित हो तब जगत्भ्रम मिट जायेगा ।
प्रणाम जी
जैसे आकाश में नीलता,सीप में रूपा और निद्रादोष से स्वप्न दिखते हैं वैसे ही यह जगत् भ्रान्ति से दिखाइ देता है । और जब अपने सवंय के स्वरूप में जागे तब जगत्भ्रम मिट जाता है । इससे कारणकार्य भ्रम को त्यागकर तुम अपने स्वरूप में स्थित हो । दुर्बोध से संकल्प रचना हुई है उसको त्याग करो और आदि, मध्य और अन्त से रहित जिसकी सत्ता है उसी आनंदस्वरूप में स्थित हो तब जगत्भ्रम मिट जायेगा ।
प्रणाम जी
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