सुप्रभात जी
जीव ने अपने अन्तःकरण में छिपी हुई अज्ञानता के अन्धकार के कारण आत्मा को अन्धा कर दिया। मायावी विषयों में अन्धी दौड़ लगाने वाली इन्द्रियों ने आत्मा को चारों ओर से घेर लिया।
आत्मा के अन्धा होने का भाव यह है कि सांसारिक विषय सुखों की इच्छा में पड़कर परमात्माके प्रेम से विमुख हो जाना। अन्तःकरण को कारण शरीर माना जाता है। उसमें छिपे हुए अज्ञान के कारण ही इन्द्रियां विषयों की ओर अंधी होकर भागती हैं । अन्तःकरण और इन्द्रियों के विषय जाल में फंसे होने के कारण जीव भी बन्धन में हो जाता है। इस प्रकार आत्मा भी जीव के ऊपर विराजमान होने के कारण बन्धन में मानी जाती है, जबकि वह अपने मूल स्वरूप में माया से सर्वथा परे है।
प्रणाम जी
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