Thursday, April 21, 2016

ना मांग्या ना दिल उपज्या, दिल ह्कें उठाया एह |
तो मांग्या खेल जुदागीये का, देने अपना इसक सनेह ||

यह दुेत की माया का खेल न तो आत्माओं ने माँगा है और न ही यह देखने की इच्छा उनके हृदये में उत्पन्न हुई है . क्योंकि ये मांगना और परमात्मा से अलग कुछ हृदये में आना ये सब दूेत के भाव है अदुेत में यह भाव नही होते इसलिए यह कभी मत समझना की यह खेल हमने माँगा या ये देखने की इच्छा हमारे हृदये में आई. वस्तुतः यह भाव भी अदुेत के कारण ही हमारे हृदये में आया था क्योंकि परमात्मा के हृदये का ही भाव अदुेत भाव के कारण हम सब आत्माओं में आया है क्योंकि परमधाम में अदुेत की लीला है इसलिए जो परमात्मा अपने हृदये में लेते हैं वही सब आत्माओं के हृदये में आ जाता है और ऐसा उन्होंने इसलिए किया है की हम आत्मवों को दुेत के खेल में भी अदुेत का आनंद मिल सके और हमें उनकी अदुेत की सत्ता का भी इल्म हो सके. क्योंकि दुयेत में प्रेम या इश्क नही है. यहाँ इस संसार में इश्क या प्रेम का अर्थ केवल स्वार्थ मात्र है क्योंकि प्रेम वह होता है जिसमें मैं और तू का भाव समाप्त होकर केवल है का भाव हो जाता है और यही भाव अदुेत कहा जाता है अर्थात जहाँ किसी दूसरे का भाव ही न हो जो तेरे दिल में है वोही मेरे दिल में भी है यही अदुेत है इसी को प्रेम या इश्क कहा जाता है. परमात्मा से प्रेम या इश्क होने का मतलब यह नही है की उसकी याद में आंसू बहाया जाये या उससे मिलने की विनती की जाये क्योंकि इन सबमे दुेत का भाव है.. प्रेम तो वो है जिसमे तू ,तू न रहे और मै, मैं न रहूँ दोनो के हृदये एक ही होजाते है बस उस " है " का ही आनंद मिलता है सदा के लिए इसलिए अदुेत को ही प्रेम कहा गया है. और वास्तव में प्रेम है भी यही इसी प्रेम का आनंद दुेत में देने के लिए ही परमात्मा ने हमे यह दुेत का खेल दिखाये है इसलिए इसका कारण केवल प्रेम ही है .....
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

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