Saturday, April 30, 2016

धनी न जाए किनको धूत्यो, जो कीजे अनेक धुतार ।
तुम चेहेन ऊपरके कै करो, पर छूटे न क्योंए विकार।।१

परमात्मा किसी भी प्रकारकी चतुराईसे ठगे नहीं जा सकते, चाहे ऐसे प्रयत्न अनेक क्यों न हों. तुम बाह्य आचरण (दिखावा)कितने भी कर लो परन्तु इनसे मनके विकार छूट नहीं सकते.
अपने केशको कोई जटा बढ़ा ले, कोई मुण्डन कराए अथवा कोई  नोंच-नोंचकर उखाड. डाले, परन्तु जब तक आत्माकी पहचान नहीं होती, तब तक ये सब वेश धारण करनेसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता.
चाहे चार बार रसोईके चौकेको साफ करो और लकड़ी को भी धोकर जलाओ. शरीरके बाह्य अङ्गोंको चाहे जितना भी स्वच्छ रख लो फिर भी इससे मन निर्मल (पवित्र) नहीं बनता.
चाहे दिनमें सात बार स्नान करो और उत्तम प्रकारके  वस्त्र धारण करो, चाहे उत्तम कुलमें जन्म लेनेका गर्व रखो फिरभी यह जीव मायाके बन्धनोंसे मुक्त नहीं हो सकता.
दिखानेके लिए चाहे सौ मालाएँ गलेमें धारण करो और दसों बार द्वादश तिलक (शरीरके बारह अंगों पर चन्दनका लेप) करते रहो, परन्तु जब तक परब्रह्म परमात्माके प्रति सच्चा प्रेम हृदयमें प्रकट न होगा, तब तक मनका फेरा नहीं छूटेगा.
चाहे भक्तिभाव दिखानेके लिए स्वर-तानके साथ रागका आलाप करते हुए कीर्तन करो और इससे स्वयं प्रसन्न रहो तथा दूसरोंको भी प्रसन्न करो फिरभी तुम्हारा मन संयमित नहीं रहेगा.
चाहे अन्नकूटका उत्सव कर विभिन्न प्रकारके व्यञ्जनोंका भोग लगाओ पश्चात् सब मिलकर प्रसादका आनन्द लो, फिरभी परमात्मा निकट नहीं आएँगे.
चाहे तुम सब संस्कृत भाषा सीख कर वेद, पुराण आदि धर्मग्रन्थोंका अध्ययन कर लो और बारह मात्राओंको अलग-अलग कर उनका अर्थ भी लगा लो, परन्तु इन सब प्रयत्नोंके बाद भी अपनी आत्माकी पहचान न हो पाएगी.
चाहे तुम योगकी साधना करो, अनहद नादका श्रवण करो, अजपा जाप करो अथवा चौरासी आसनोंका प्रयोग करो, साधना द्वारा आकाशमें उड.ने लगो अथवा भूमिके अन्दर समाधि लगा लो तथा पञ्चमहाभूतोंसे बने इस ब्रह्माण्डमें जितनी भी प्रगति करो, तथापि अन्तमें शून्य निराकारको छोड.कर उससे आगे कोई भी नहीं बढ. सका.
चाहे ज्योतिषका अभ्यास कर भविष्यवक्ता बनो, दूसरोंके मनको परख लो. चाहे तुम्हें चौदह लोकोंके ज्ञाानकी भी समझ आने लगे. चाहे जप अथवा चमत्कार द्वारा मृतको जीवित भी कर लो, परन्तु इन सबके करने पर भी तुम्हें अपने मूल घर (परमधाम) की सुधि प्राप्त नहीं हो सकेगी.

जो आत्माकी पहचान करवा दें, मायाकी सूझ देकर आत्माके स्वामी परमात्मा तथा परमधामकी पहचान भी करवा दें. ऐसे सद्गुरुके मिलने पर आत्म-जागृतिका मार्ग प्रशस्त होगा. इसलिए ऐसे अवसरको हाथसे जाने मत दो.

इस प्रकारकी पहचान होने पर आत्माको अखण्ड सुखका अनुभव होता है और अपने परमात्मा के साथ मूल सम्बन्धकी भी पहचान होती है. इस प्रकार जो अखण्ड ज्ञाानके तेजकी वर्षा करते हैं, ऐसे व्यक्तिको खोज कर ही अपना सद्गुरु बनाना चाहिए.
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी

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