बहुमूल्य मानव शरीर तब प्राप्त होता है जब जीव चौरासी लाख योनियां भटक लेता है, एसी भारतीय दर्शन की मान्यता है। इसलिए इस उपहार को जो मानव शरीर के रूप में उपलब्ध है संसार की नश्वर एवं तुच्छ वस्तुओं के
मोह में न गंवा कर अध्ययन, मनन और चितंन और ध्यान में सदुपयोग करें।
इस जीवन को क्षनिक कहा गया है। यहां तक कि 'न जाने इन स्वांस को फिर आवन होय न होय' जो श्वास हम लेते हैं, उसका भी विश्वास नहीं कि बाहर वापस आये या नहीं। इसलिए हमें अमूल्य अवसर मिला है कि इस शरीर को व्यर्थ में समय को सोकर व्यतीत न करें। इस देह से ही परमात्मा के अखंड आनंद को प्राप्त करें।
जन्म से ही हमारे सभी के शरीर नाशवान हैं। ये सब देखते ही देखते मिट जाएंगे, इस पलभर के जीवनरूपी नाटक में ही उलझ कर न रह जायें। जीवन के एक एक क्षण को सत्य की खोज व उसके ध्यान में लगा दें। इसकी उपयोगीता को समझ कर सुभ विचारों से भर दें.।
सिर दे देने पर भी अर्थात अपना सर्वस्व समर्पित कर लाखों करोडो मोहरें लुटा देने पर भी अमूल्य जीवन का एक क्षण लौटाया या बचाया नहीं जा सकता। ऐसे अमूल्य जीवन का एक भी पल अगर व्यर्थ चला जाता है तो उसके बराबर संसार में कोई हानी नहीं।
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प्रणाम जी
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