सुप्रभात जी
गायत्री क्या है क्या गायत्री देवी है ..??
www.facebook.com/kevalshudhsatye
गायत्री एक छंद है इस कारण इस छंद में लिखे हुए सभी मन्त्र गयेत्री मन्त्र ही कहे जाते है | इसका प्रमाण गीता में श्री कृष्ण ने दिया है ज कहते है की ‘गायत्री छन्दसां अहम’’ अर्थात चन्दो में मै गायत्री हूँ गायत्री मंत्र ऋग्वेद में एक बार,यजुर्वेद में ४ बार और सामवेद में एक बार आया है इस छंद को निचृत गायेत्री कहते हैं | यह विशेष बात है की गायेत्री में केवल परब्रह्म की ही आराधना की गयी है और किसी देवी देवता की नही | आइये इसमन्त्र का अर्थ जानें..
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोदयात्।
ऊँ - ईश्वर
भू: - प्राणस्वरूप
भुव: - दु:खनाशक
स्व: - सुख स्वरूप
तत् - उस
सवितु: - तेजस्वी
वरेण्यं - श्रेष्ठ
भर्ग: - पापनाशक
देवस्य - दिव्य
धीमहि - धारण करे
धियो - बुद्धि
यो - जो
न: - हमारी
प्रचोदयात् - प्रेरित करे
अर्थ है - उस प्राणस्वरूप, दु:ख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, परमात्मा के दिव्य स्वरूप को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग पर प्रेरित करे।
यधपि अथर्वेद १९/७१/१ में इसे वेद माता अवश्य कहा गया है –
सतुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावमानी दूिजानाम |
आयुः प्राण पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चसम् महाम् दत्वा व्रजति ब्रह्मलोकम् ||
(अथर्वेद १९/७१/१)
परन्तु इसका आशय यह है की मैं उस ज्ञानरुपी माता की स्तुति करता हुं जो दुिजों को पवित्र करने वाली है वह हमें आयु ,जीवन ,पशुधन ,यश ,और ब्रह्मतेज प्रदान करके ब्रह्म के धाम ले जाती है |
इस मन्त्र में गायत्री मन्त्र की शक्ति को वेदों में दिए ब्रह्म के ज्ञान को परब्रह्म से मिलाने वाली शक्ति के रूप में दर्शाकर उस शक्ति को मात्रशक्ति के रूप में बताया गया है इसलिए उसे माता कह कर पुकारा गया है जिसे पूराणपंथी लोगो ने तारतम के आभाव में एक देवी के रूप में दर्शा दिया....
इसलिए गायत्री कोई देवी नही है गायत्री मन्त्र है जो गायत्री छंद में है ,इसकी महिमा इसलिए ज्यादा है क्योंकि इसमें परब्रह्म का विषय दिया है केवल परब्रह्म का विषय होने के कारण इसकी इतनी महिमा अनेक मनिषियों नें बताई गयी है जैसे....
विश्वामित्र का कथन है- 'ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है ।। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला और कोई मंत्र नहीं है ।।
योगिराज याज्ञवल्क्य कहते हैं- 'गायत्री और समस्त वेदों को तराजू में तौला गया ।। एक ओर षट् अंगों समेत वेद और दूसरी ओर गायत्री, तो गायत्री का पलड़ा भारी रहा ।। वेदों का सार उपनिषद् हैं, उपनिषद् का सार व्याहृतियों समेत गायत्री है ।। जो द्विज गायत्री परायण नहीं, वह वेदों का पारंगत होते हुए भी शूद्र के समान है, अन्यत्र किया हुआ उसका श्रम व्यर्थ है ।। जो गायत्री का अर्थ नहीं जानता, ऐसा व्यक्ति ब्राह्मणत्व से च्युत और पापयुक्त हो जाता है ।'
पाराशर जी कहते हैं- 'समस्त जप सूक्तों तथा वेद मंत्रों में गायत्री मंत्र परम श्रेष्ठ है ।। वेद और गायत्री की तुलना में गायत्री का पलड़ा भारी है ।। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास पढ़ लेने पर भी जो गायत्री के ज्ञान से हीन है, उसे ब्राह्मण नहीं समझना चाहिये ।'
अत्रि मुनि कहते हैं- 'गायत्री का ज्ञान आत्मा का परम शोधन करने वाला है ।। उसके प्रताप से कठिन दोष और दुर्गुणों का परिमार्जन हो जाता है ।। जो मनुष्य गायत्री तत्त्व को भली प्रकार से समझ लेता है, उसके लिए इस संसार में कोई सुख शेष नहीं रह जाता है ।'
महर्षि व्यास जी कहते हैं- 'जिस प्रकार पुष्प का सार शहद, दूध का सार घृत है, उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री है सिद्ध की हुई गायत्री कामधेनु के समान है ।। गंगा शरीर के पापों को निर्मल करती है, गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र होती है ।। जो गायत्री के ज्ञान के उपरांत अन्य देवीदेवताओं की उपासनाएँ करता है, वह पकवान छोड़कर भिक्षा माँगने वाले के समान मूर्ख हैं ।।
ध्यान रहे ये सब संतो के विचार तारतम के आने से पहले के हैं इसलिए उन्होंने परब्रह्म की उपासना से स्म्भन्दित होने के कारण गायत्री की इतनी प्रशंशा की है तो सोचिये तारतम वाणी में तो परब्रह्म के धाम स्वरुप व उसे पाने का पूरा विवरण दिया गया है तो तारतम वाणी की महिमा कितनी होगी ....
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment