हे परमात्मा सब कुछ आप ही करते हैं और आप ही कराते हैं। आप ही अपने पास पहुँचवाते हैं (पहचान कराते हैं)। इन बातों को जो तिल मात्र भी अपने ऊपर लेती हैं, निश्चित रूप से वह आत्मा बहुत ही नासमझ कही जाती है।
जैसे सागर के बिना लहरों, चन्द्रमा के बिना चांदनी और सूर्य के बिना किरणों का कोई अस्तित्व नहीं है। इसी प्रकार यदि लहरें, चांदनी और किरणें स्वयं को सागर, चन्द्रमा और सूर्य से अलग मानने लगें तथा स्वयं को लीला का कर्ता-धर्ता मानने लगें तो इससे बड़ी नादानी और कुछ भी नहीं हो सकती। अक्षरातीत की अंगरूपा अंगनायें उन्हीं की स्वरूपा हैं। उनके स्वरूप में स्वयं परमात्मा ही लीला करते हैं...
प्रणाम जी
जैसे सागर के बिना लहरों, चन्द्रमा के बिना चांदनी और सूर्य के बिना किरणों का कोई अस्तित्व नहीं है। इसी प्रकार यदि लहरें, चांदनी और किरणें स्वयं को सागर, चन्द्रमा और सूर्य से अलग मानने लगें तथा स्वयं को लीला का कर्ता-धर्ता मानने लगें तो इससे बड़ी नादानी और कुछ भी नहीं हो सकती। अक्षरातीत की अंगरूपा अंगनायें उन्हीं की स्वरूपा हैं। उनके स्वरूप में स्वयं परमात्मा ही लीला करते हैं...
प्रणाम जी
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