सुख और आनंद में कया भेद है..??
बाहरी दृष्य में आनंद का प्रतिबिंबित होना सुख है .. अर्थात सुख का अस्तितव है ही नही, यह तो केवल आनंद का प्रतिबिंब है.. प्रतिबिंब भ्रम होता है सत्य नही.. प्रतिबिंब कभी पकड़ में नही आता इसलिय सुख भी कभी पकड़ में नही आता .. *प्रतिबिंब हमेंशा अमने सत्य स्वरूप के विपरीत दिशा में बन्ता हैं* .. इसलिय सुख भी बाहर दिखता है.. अर्थात आनंद=परमात्मा या सवंय अन्दर है , बाहर तो हर वस्तु में आपका ही प्रतिबिंब सुख बनकर आपको भ्रमित कर रहा है..
*बाहर से अंदर की और मुड जाओ, असत्य से सत्य की और चलो, प्रतिबिंब से मूल स्वरूप की और चलो, सुख से आनंद की और चलो, दूैत से अदूैत की और चलो, अपनी और चलो, सवंय को जान जाओ, तुम सवंय आनंद हो फिर प्रतिबिंब कयो पकडते हो ?
इस प्रतिबिम्ब रूपी सुख के लिय मूल आनंद को कयों भूलाऐ बैठे हो ? और घोर अग्यान दोखिये अपने मूल आनंद को त्याग कर झूठे प्रतिबिम्ब के सुख को पाने के लिय और खोने के भय से अनेक देवी देवताओं की गुलामी करते हो । मूल को पकडो, स्वतंत्र बनो, झूठ में सदा भय रहता है, झूठ गुलाम बनाता है सत्य सदा स्वतंत्र है । केवल सत्य, नित्य भाव में रहो, आनंद रहो ।
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प्रणाम जी
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