Wednesday, May 9, 2018

ठग से सावधान

किसी व्यक्ति का एकमात्र पुत्र गुम गया था। उसे गुमे बहुत दिन-बहुत बरस बीत गए। सब खोजबीन करके वह व्यक्ति भी थक गया। फिर धीरे-धीरे वह घटना को ही भूल गया।
तब अनेक वर्षो बाद उसके द्वार एक अजनबी आया और उसने कहा, ''मैं आपका पुत्र हूं। आप पहचाने नहीं?'' पिता प्रसन्न हुआ। उसने घर लौटे पुत्र की खुशी में मित्रों को प्रीतिभोज दिया, उत्सव मनाया और उसका स्वागत किया। लेकिन, वह तो अपने पुत्र को भूल ही गया था और इसलिए इस दावेदार को पहचान नहीं सका। वह व्यक्ति उसका पुत्र नहीं था और समय पाकर वह उसकी सारी संपत्ति लेकर भाग गया था। ऐसे ही दावेदार प्रत्येक के सामने आते हैं, लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो कि उन्हें पहचानते हों। अधिक लोग तो उनके धोखे में आ जाते हैं और अपनी जीवन रूपी संपत्ति खो बैठते हैं। आनंद ही आपका वास्तविक पुत्र है, आत्मा से उत्पन्न होने वाले वास्तविक आनंद की बजाय, जो वस्तुओं और विषयों से निकलने वाले सुख को ही आनंद समझ लेते हें, उन्हें ये उनके नकली पुत्र सारी उम्र ठगते रहते है ओर वे जीवन की अमूल्य संपदा को अपने ही हाथों नष्ट कर देते हैं।

स्मरण रखना कि जो कुछ भी बाहर से मिलता है, वह छीन भी लिया जावेगा। उसे अपना समझना भूल है। स्वयं का तो वही है, जो कि स्वयं में ही उत्पन्न होता है। वही वास्तविक संपदा है। उसे न खोजकर जो कुछ और खोजता है, वे चाहे कुछ भी पा लें, अंतत: वे पायेंगे कि उन्होंने कुछ भी नहीं पाया है और उल्टे उसे पाने की दौड़ में वे स्वयं के जीवन को ही गंवा बैठे हैं।

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