*आप दुःखी क्यों है?*
तनिक स्वस्थता से विचारिये कि आप दुःखी क्यों हैं ? आपके पास धन नहीं है ? आपकी बुद्धि तीक्ष्ण नहीं है ? आपके पास व्यवहारकुशलता नहीं है ? आप रोगी हैं ? आपमें बल नहीं है ? अथवा आपमें सांसारिक ज्ञान नहीं है ? बहुतों के पास यह सब है :धनवान हैं, बलवान हैं, व्यवहारकुशल हैं, बुद्धिमान हैं, जगत का ज्ञान भी जीभ के सिरे पर है, तथापि वे दुःखी हैं । दुःखी इसलिए नहीं हैं कि उनके पास इन सब वस्तुओं अथवा वस्तुओं के ज्ञान का अभाव है । परन्तु दुःखी इसलिए हैं कि संसार का सब कुछ जानते हुए भी अपने आपको नहीं जानते । अपने आपको जान लें तो सर्व शोकों से पार हो जायें, जन्म-मरण से पार हो जायें । ... और अपने आपको न जानें तो शेष सब जाना हुआ धूल हो जाता है, क्योंकि शरीर की मृत्यु के साथ ही समस्त यहीं रह जाता है ।
मिथ्या में सत्य को जान लेना, नश्वर में शाश्वत को खोज लेना, आत्मा को पहचान लेना तथा आत्मामय होकर जीना यही विवेक है । इसके अतिरिक्त अन्य सभी मजदूरी है, व्यर्थ बोझा उठाना और अपने आपको मूढ़ सिद्ध करने जैसा है । ऎसा विवेक धारण कर अपने आपको आध्यात्मिक मार्ग पर चला दें तो सभी कुछ उचित हो जाये, जीवन सार्थक हो जाये । अन्यथा कितने ही गद्दी-तकियों पर बैठिए, टेबल-कुर्सियों पर बैठिए, एयरकंडीशन्ड कार्यालयों में बैठकर आदेश चलाइये अथवा जनता के सम्मुख ऊँचे मंच पर बैठकर अपनी नश्वर देह और नाम की जयजयकार करवा लीजिए परंतु अंत में कुछ भी हाथ न लगेगा ।
आप जहाँ के तहाँ ही रह जायेंगे । आयु बीत जायेगी और पछतावे का पार न रहेगा । जब मौत आयेगी तब जीवन भर कमाया हुआ धन, परिश्रम करके पाये हुए पद-प्रतिष्ठा, लाड़ से पाला-पोसा यह शरीर निर्दयतापूर्वक साथ छोड़ देगा । आप खाली हाथ रोते रहेंगे, बार-बार जन्म-मरण के चक्कर में घूमते रहेंगे । इसीलिए केनोपनिषद के ऋषि कहते हैं :
इह चेदवेदीदथ सत्यमस्ति ।
न चेदिहावेदीन महती विनष्टिः ॥
’यदि इस जीवन में ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया या परमात्मा को जान लिया, तब तो जीवन की सार्थकता है और यदि इस जीवन में परमात्मा को नहीं जाना तो महान विनाश है ।’ (केनोपनिषद : २.५)
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment