क्या मैं रोज़ थोड़ा थोड़ा प्रेम बढ़ा कर परमात्मा को पा सकता हूं ???
क्या तुम रोज छोटे छोटे पानी के गढढे बना कर समुन्द्र का निर्माण कर पाओगे ? तुम प्रेम का अर्थ ही भी समझे हो। प्रेम खुद ही परमात्मा है। प्रेम अथाह है । अथाह को छोटे छोटे टुकड़ों में कैसे बांट सकते हो। हम गलती ये कर रहे हैं कि हमें जो बौद्ध होना है उसको अपने अनुसार बना लेते हैं। अर्थात हम प्रेम बढ़ा कर परमात्मा को पाना चाहते हैं, जबकी परमात्मा स्वयं प्रेम ही है, तो तुम जिसे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हो वो प्रेम नहीं है, ये मोह है, एक गुण है, ये वही वस्तु है जो तुम संसार मे सबसे करते हो, ये भी तुम इतना नहीं कर पाओगे जितना तुम संसार में करते हो। फिर क्यों खुदको धोखा दे रहे हो।
जिस दिन प्रेम का बोध होगा उस दिन कुछ पाना नहीं रह जायेगा। ध्यान रहे प्रेम को ही पाना है, प्रेम से पाने जैसे कुछ नहीं है। प्रेम क्या है? इस विषय पर हमारी पहले एक पोस्ट आ चुकी है वो आप satsangwithparveen.bolgspot.com पर जाकर पढ़ सकते हैं। या fb पर www.facebook.com/kevalshudhsatye
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