सुप्रभात जी
1.ज्ञान की अवस्था कौनसी है ??
*किसी वस्तु को सीखना, पढना, याद करना,या पुस्तको से बुद्धी भर लेना ग्यान नही है. कोई भी वेद या वाणी आदी ग्रन्थो को कंठस्त करके आपना परभाव तो अवश्य बढा लेता है पर ये ग्यान नही है ये बोझ है.
अपने वास्तविक स्वभाव मे उपस्थित होना ग्यान है.
उदाहरण - जैसे आप कोई वस्तु या पिक्चर या अन्य को वस्तू देख रहे हैं तो उस वक्त आप आपने वास्तविक स्वभाव में नही होते अपितु उस वस्तु के प्रभाव में रहते हैं पर जैसे ही आप उसके प्रभाव से हटकर अपने स्वभाव में आते हैं तो आपको आपसे संबंधित वस्तूऔ का व अपने पास उपस्थित वस्तुओ का पूर्ण व सही बोध जैसा पहले था वैसा ही फिर से हो जाता है इसी सत्य बोध को ग्यान काहा जाता है अर्थात ग्यान का अर्थ है सत्य बोध ..जैसे ब्रह्मआत्मांये माया के प्रभाव में जब तक है तब तक वो अपने स्वभाव में नही हैं व तब तक ही उन्हे संबंधित वस्तु(सत्य परमधाम) का व अपने पास उपस्थित(परमात्मा) वस्तु का पूर्ण व सही बोध नही होता पर जैसे ही वो प्रभाव से स्वभाव में आती है तो उसको उससे संबंधित वस्तूऔ का व उसके पास उपस्थित वस्तुओ का पूर्ण व सही बोध जैसा पहले था वैसा ही फिर से हो जाता है इसी सत्य बोध को शाब्दिक रूप में बृह्मग्यान काहा जाता है व यही परमग्यान की अवस्था है..
**बुद्धी चतुराई नही अपितू अपने मूल व सत्य स्वभाव का बोध होना ही वास्तविक व सत्य ग्यान है** इसके बाद भाव शून्य होना स्वभाविक है..
प्रणाम जी
1.ज्ञान की अवस्था कौनसी है ??
*किसी वस्तु को सीखना, पढना, याद करना,या पुस्तको से बुद्धी भर लेना ग्यान नही है. कोई भी वेद या वाणी आदी ग्रन्थो को कंठस्त करके आपना परभाव तो अवश्य बढा लेता है पर ये ग्यान नही है ये बोझ है.
अपने वास्तविक स्वभाव मे उपस्थित होना ग्यान है.
उदाहरण - जैसे आप कोई वस्तु या पिक्चर या अन्य को वस्तू देख रहे हैं तो उस वक्त आप आपने वास्तविक स्वभाव में नही होते अपितु उस वस्तु के प्रभाव में रहते हैं पर जैसे ही आप उसके प्रभाव से हटकर अपने स्वभाव में आते हैं तो आपको आपसे संबंधित वस्तूऔ का व अपने पास उपस्थित वस्तुओ का पूर्ण व सही बोध जैसा पहले था वैसा ही फिर से हो जाता है इसी सत्य बोध को ग्यान काहा जाता है अर्थात ग्यान का अर्थ है सत्य बोध ..जैसे ब्रह्मआत्मांये माया के प्रभाव में जब तक है तब तक वो अपने स्वभाव में नही हैं व तब तक ही उन्हे संबंधित वस्तु(सत्य परमधाम) का व अपने पास उपस्थित(परमात्मा) वस्तु का पूर्ण व सही बोध नही होता पर जैसे ही वो प्रभाव से स्वभाव में आती है तो उसको उससे संबंधित वस्तूऔ का व उसके पास उपस्थित वस्तुओ का पूर्ण व सही बोध जैसा पहले था वैसा ही फिर से हो जाता है इसी सत्य बोध को शाब्दिक रूप में बृह्मग्यान काहा जाता है व यही परमग्यान की अवस्था है..
**बुद्धी चतुराई नही अपितू अपने मूल व सत्य स्वभाव का बोध होना ही वास्तविक व सत्य ग्यान है** इसके बाद भाव शून्य होना स्वभाविक है..
प्रणाम जी
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