Thursday, March 31, 2016


सुप्रभात जी

अरे मन ! तू निरन्तर परमात्मा विषय का सेवन कर | तू समझता है कि विषयों को मैं भोगता हूँ किन्तु सच यह है कि विषय तुझे भोग रहे हैं | तू कामादिकों को सांसारिक विषय देकर मिटाना चाहता है किन्तु जलती हुई आग में घी पड़ने के समान तेरी वासनाएँ प्रतिक्षण बढ़ती जाती हैं | ऐसा अनुभव करते - करते यद्यपि तुझे अनन्त युग बीत चुके फिर भी तेरी नींद नहीं खुली |तू अब भी मेरी बात मान ले एवं परमात्मा से प्रेम कर | उन्हीं के प्रेम जल से यह तेरी कामनाओं की आग बुझ सकती है ..

प्रणाम जी

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