दुखकी प्यारी प्यारी पीउकी, तुम पूछो वेद पुरान ।
ए दुख मोहिको भला, जो देत हैं अपनी जान ॥ कि. १६/६
(वाणी मेरे पीयु की)
प्रश्न उठता है की परमात्मा को चाहने वालों के लिए दुःख क्या है ?? कयोंकी दुख कामना के कारण होता है तो संसार से दुख तो उन्हे होगा जो संसार की कामना करेगा .. तो परमात्मा को चाहने वालों के लिए दुःख क्या है ...आइये जान्ने का प्रयास करते हैं...
जैसे खारे पानी की मछली मीठे पानी में तडफ तडफ कर मर जाती है और मीठे की खारे में ..इसी तरह सदा अदूैत के रस में डूबी हूइ आत्माऐं आदूैत के खेल में आकर तडफकर अदूैत की ही खोज में रहती हैं ..उनकी दूैत में अदूैत के लिय तडफ ही अनका दुख है यही दुख उनकी अदैूत के लिय तडफ को बढा कर उनके मार्ग को प्रश्सत करता है और यही तडफ या दुख उन आतमाओं के लिय कल्याणकारी होने के कारण उन्हे प्रिय होता है और जिस को यह दुख प्रिय है वो परमात्मा की प्रिय है कयोंकी शुद्ध अदूैत ही तो परमात्मा हैं और किसी भी वस्तु में संलग्नता ही तो प्रेम है और शुद्ध अदूैत परमात्मा सवंय प्रेम हैं इसलिय शुद्ध अदूैत सवंय प्रेम परमात्मा में संलग्नता होगी तो वहा से परेम प्रवाहित तो स्वभाविक है ..अंशी को अपने मूल से पोषण मिलता है ,यह बात सभी वेद पुराणो में वर्णीत है...
सरलता से कहें तो परमात्मा को चाहने वालो के लिए सबसे बड़ा दुःख उस से न मिल पाना है या दूर रहना है ..इसलिए कहा गया है की जिसको ये दुःख लग जाता है वो परमात्मा की सबसे प्यारी आत्मा होती है ..इसलिए ये दुख मुझे बोहोत प्रिये है क्योंकि ये मुझे उनसे मूल संबंध के कारण मिला है उन्होने अपना मान के दिया है ...
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
ए दुख मोहिको भला, जो देत हैं अपनी जान ॥ कि. १६/६
(वाणी मेरे पीयु की)
प्रश्न उठता है की परमात्मा को चाहने वालों के लिए दुःख क्या है ?? कयोंकी दुख कामना के कारण होता है तो संसार से दुख तो उन्हे होगा जो संसार की कामना करेगा .. तो परमात्मा को चाहने वालों के लिए दुःख क्या है ...आइये जान्ने का प्रयास करते हैं...
जैसे खारे पानी की मछली मीठे पानी में तडफ तडफ कर मर जाती है और मीठे की खारे में ..इसी तरह सदा अदूैत के रस में डूबी हूइ आत्माऐं आदूैत के खेल में आकर तडफकर अदूैत की ही खोज में रहती हैं ..उनकी दूैत में अदूैत के लिय तडफ ही अनका दुख है यही दुख उनकी अदैूत के लिय तडफ को बढा कर उनके मार्ग को प्रश्सत करता है और यही तडफ या दुख उन आतमाओं के लिय कल्याणकारी होने के कारण उन्हे प्रिय होता है और जिस को यह दुख प्रिय है वो परमात्मा की प्रिय है कयोंकी शुद्ध अदूैत ही तो परमात्मा हैं और किसी भी वस्तु में संलग्नता ही तो प्रेम है और शुद्ध अदूैत परमात्मा सवंय प्रेम हैं इसलिय शुद्ध अदूैत सवंय प्रेम परमात्मा में संलग्नता होगी तो वहा से परेम प्रवाहित तो स्वभाविक है ..अंशी को अपने मूल से पोषण मिलता है ,यह बात सभी वेद पुराणो में वर्णीत है...
सरलता से कहें तो परमात्मा को चाहने वालो के लिए सबसे बड़ा दुःख उस से न मिल पाना है या दूर रहना है ..इसलिए कहा गया है की जिसको ये दुःख लग जाता है वो परमात्मा की सबसे प्यारी आत्मा होती है ..इसलिए ये दुख मुझे बोहोत प्रिये है क्योंकि ये मुझे उनसे मूल संबंध के कारण मिला है उन्होने अपना मान के दिया है ...
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