सुप्रभात जी ..कल का क्रमशः
समस्त जीव आनंद ही चाहते हैं, क्योंकि वे आनंद के ही अंश हैं.आनंद और परमात्मा एक ही तत्व हैं, आनंद को चाहना अर्थात परमात्मा को चाहना. अतएव विश्व के सभी जीव आस्तिक ही हैं.दूसरी ओर समस्त जीव नास्तिक भी हैं. ऐसा विरोधाभास क्यों?
वेद कहते हैं कि उन परमात्मा को कोई नहीं जान सकता, किसी भी साधन से वे अग्राह्य हैं.
जीव के पास जो भी सामान है, मन-बुद्धि-इन्द्रियाँ वगैरह, ये सब मायिक हैं, माया की बनी हुई.
मायिक वस्तु से मायिक चीजें ही ग्रहण की जा सकती हैं, मायिक का विषय दिव्य नहीं हो सकता. और परमात्मा तो दिव्य चिन्मय हैं..इसलिय मायिक वस्तुओं के माध्यम से हम परमात्मा के नाम पर माया की ही वस्तुऐं ग्रहण करते रहते हैं अर्थात सत्य के स्थान पर असत्य याने सत्य से विमुख यानें चाह सत्य आनंद रहे हैं अर्थात आस्तिक हैं परन्तु ग्रहण असत्य कर रहे हैं याने नास्तिक हैं..
इसलिए परमात्मा जाने नहीं जा सकते, पुनः मानेंगे कैसे और फिर प्रेम ही कैसे होगा जबकि आस्तिक वह है जो परमात्मा को निरंतर माने.
इस प्रकार से समस्त जीव नास्तिक सिद्ध हुए. अर्थात आस्तिक भी है और नास्तिक भी.
तो फिर वो सत्य परमात्मा कैसे प्राप्त हो..??? इसे कल जान्ने का परयास करेंगें..
Satsangwithparveen.blogspot.com
प्रणाम जी
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